रविवार, 29 जनवरी 2012

नमी ......






                                                               
मेरी हथेलियाँ
अभी तक नम हैं,
उनकी गर्मी में 
घुल गयी है
तेरी हथेलियों की नमी ! 
ये वो नमी है जो
दे जाती है मेरी आँखों को
एक अजीब सी ख़ामोशी...
तुम्हारी आँखें भी तो
कहती हैं मुझसे कुछ
अनकहा सा....
अनबूझा सा..
और कहना चाह कर भी
मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
बस यहीं पर...
मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
अपने सारे लफ़्ज़ों को
बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!





17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  2. thahr gaye they
    ab phir se chalne lago ho
    kab daudoge
    intzaar karenge

    कहना चाह कर भी
    मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
    बस यहीं पर...
    मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
    अपने सारे लफ़्ज़ों को
    बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!
    wo kyaa kah rahaa hai
    chup chaap suntee rahtee hoon!!!!!!

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  3. और चुप रहकर सब कुछ बयाँ कर देती हैं..

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    उत्तर
    1. अंतर्मन की गहराई से लिखी
      सुन्दर भावपूर्ण रचना है

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  4. सच कई बार लफ्ज़ और अलफ़ाज़ खो जाते हैं जज्बातों में......बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट|

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  5. अंतर्मन की गहराई से लिखी
    सुन्दर भावपूर्ण रचना है

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा /

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  7. अंतर्मन की गहराई से लिखी सुन्दर भावपूर्ण रचना है
    By sangita on नमी ...... at 7:44 AM

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  8. भावनाएँ ऐसी ही होती हैं...शब्दों की पकड़ से बाहर...

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  9. और कहना चाह कर भी
    मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
    बस यहीं पर...
    मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
    अपने सारे लफ़्ज़ों को
    बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!
    ...
    बहुत प्यारी लगी आपकी बेबसी !! :)

    जवाब देंहटाएं