रविवार, 13 सितंबर 2015

कागज के टुकड़ों सा मन.......



कागज के टुकड़ों सा 
कभी कभी
बिखरता है मन...!
उड़ता जाता है
कितनी ही ऊंचाइयों को
छूता जाता है
हवा की लहरों के संग
कितने ही सँकरे
तीखे मोड़ों से गुज़र कर
टुकड़ा टुकड़ा...
टकरा कर आपस में
छू लेता है ज़मीन को
थक हार कर....!
फिर उभरते हैं..
उसमें कुछ अक्षर...
कुछ सीधे-साधे..
कुछ टेढ़े-मेढ़े...
और फिर कागज के टुकड़े 
जुड़ने लगते हैं यक ब यक...
और कुछ ऐसी ही 
रचना आकार ले लेती है....
स्वतः ही..........!!




आप अब दिल में समाते जाइये.....









जल रही शम्मा बुझाते जाइये..
आप अब दिल में समाते जाइये..!

जब मुनासिब ही नहीं रुकना तेरा..
रुठती हूँ मैं....मनाते जाइये..!

शाम से दिल कर रहा है जुस्तजू..
प्यार की खुशबू लुटाते जाइये...!

अब तलक है ये शहर भी अजनबी..
आप ही अपना बनाते जाइये...!

छू के आहिस्ता से पलकों को मेरी..
नींद पलकों में सजाते जाइये...!

रूठने में और आयेगा मज़ा..
आप अब मुझ को मनाते जाइये...!

दिल ने चाहा था कहे कुछ आपसे.. 
आप भी कुछ तो सुनाते जाइये..!

राह ए उल्फत में मिले  'पूनम' कोई ...
फूल कदमों में बिछाते जाइये..!


***पूनम***

सोमवार, 27 जुलाई 2015

दिल है दीवाना अपना.....





आपकी बात कहें या कि फसाना अपना...
क्या कहें आपसे ये दिल है दिवाना अपना.!

बात वाजिब थी तुझे भूल ही जाते हम भी..
क्या करें बात कोई दिल ही न माना अपना.!

यूँ तो आवाज़ कई बार लगाई उसने...
हो सका फिर भी नहीं लौट के जाना अपना..!

इश्क के नाम पे बस तोहमतें लेते आये...
झूठ ही कहते रहे दिल है सयाना अपना.!

चाँद चमका तो हुई रौशनी इतनी 'पूनम...'

हो गया आपके दिल में यूँ ठिकाना अपना.!






सोमवार, 29 जून 2015

कोई रोये, हँसा करे कोई....





कोई रोये,  हँसा करे कोई..
वो न समझे तो क्या करे कोई..!

है अजब चीज भी मुहब्बत ये..

या खुदा अब भला करे कोई..!

आज दिल फिर उसी पे आया है..

आज फिर जाँ जला करे कोई..!

कल तलक वो मुझे नसीब न था..

आज इसका गिला करे कोई..!

चाँदनी ने हिज़ाब पहना है..

अब तो छुपके मिला करे कोई..!

पँछियों ने उड़ान भर ली है..

हाथ अब क्यूँ मला करे कोई..!

वो है मगरूर अपनी सूरत पे..

फ़िक़्र क्यूँ हो मिटा करे कोई..!

रंग जमाने का चढ़ गया है जब..

बात क्यूँ कर सुना करे कोई..!

ज़िन्दगी की उदास राहों में.. 

संग 'पूनम' चला करे कोई..!

***पूनम***

28 जून, 2015


शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

इक बात अधूरी सी....






दिल चाहता जो कहना वो बात है अधूरी
ख्वाबों  ने जो सजाई  बारात  है अधूरी..!

पुरवाइयों के झोंके तन मन जला रहे हैं 
तेरे बिना ओ साजन बरसात है अधूरी..!

चादर सी चाँदनी की पसरी हुई है छत पे
बेताबियाँ  बढ़ाती,  हर  रात  है  अधूरी..!

खिलते गुलों के चेहरे हमको लुभा न पाए 
तेरी  महक  बिना  हर सौगात  है अधूरी..!

क्यूँ  बोल ठहरे 'पूनम' तेरे मेरे लबों पर
क्यूँ हाय दास्तान-ए-नग़्मात है अधूरी..!



***पूनम***


शनिवार, 21 मार्च 2015

उन्वान.......




जिसकी आँखें कभी
नई नज़्म का
उन्वान हुआ करती थीं...!
जिसकी बातें कभी
झरनों की रवानी सी
बहा करती थीं...!
जिसके होठों की तलब
फूलों को रहा करती थी...!
जो तेरे दिल में कभी
धड़कन सी रहा करती थी...!
जिसके हाथों की छुअन
जिंदगी दे जाती थी...!
वो जो तेरे ख्वाबों में
हर वक्त मुस्कुराती थी...!
वो जो तुझमें ही
तेरी रूह सी बस जाती थी...
वो जो तेरे बोलों में
किसी गीत सी बज जाती थी...!
आज वो आँख भी
बेनूर हुई जाती है..!
और हर बात भी
बेबूझ हुई जाती है...!
तेरी बातों से
जो इक जिंदगी जी जाती थी
आज वो ज़िंदगी
पत्थर सी हुई जाती है...!!


***पूनम***
२१/०३/२०१५