मंगलवार, 31 जनवरी 2012

याद तेरी आ जाती है.....





                   



                                          याद तेरी आ जाती है.....

खेतों में जब फूली सरसों,
भूली - बीती   बातें बरसों,
जब कोयल कू कू की आवाज़ लगाती है.....
याद तेरी आ जाती है !

                                           सूरज ने फैलाई किरणें,
                                           सागर  की लहराई लहरें,
                                           जब दौड़-दौड़ के ये तट को छू जाती हैं......
                                           याद तेरी आ जाती है !

संझा को पंछी घर आते,
याद आते कुछ बिछड़े नाते,
जब तुलसी-चौरा में कोई दिया जलाती है.....
याद तेरी आ जाती है !

                                          पलकों में मेरी नींद नहीं,
                                          नैनों में कोई स्वप्न नहीं,
                                          छत पर पसरी शीतल चाँदनी जलाती है......
                                          याद तेरी आ जाती है !



रविवार, 29 जनवरी 2012

नमी ......






                                                               
मेरी हथेलियाँ
अभी तक नम हैं,
उनकी गर्मी में 
घुल गयी है
तेरी हथेलियों की नमी ! 
ये वो नमी है जो
दे जाती है मेरी आँखों को
एक अजीब सी ख़ामोशी...
तुम्हारी आँखें भी तो
कहती हैं मुझसे कुछ
अनकहा सा....
अनबूझा सा..
और कहना चाह कर भी
मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
बस यहीं पर...
मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
अपने सारे लफ़्ज़ों को
बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!





शनिवार, 28 जनवरी 2012

अच्छा नहीं लगता.......

इस बार 'जावेद अख्तर साहेब' की एक ग़ज़ल यहाँ पर आप सबों के लिए ले आई हूँ ! बहुत दिनों से सोच रही थी कि कहाँ लिखूं फिर "तुम्हारे लिए"  से बेहतर जगह नहीं मिली....!
कहाँ सुनी, कहाँ देखी, याद नहीं....बस सुन कर  अच्छी लगी और लिख डाली.....!!
उम्मीद है कि आप सबों को पसंद आएगी.....




जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रास्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

             गलत बातों को खामोशी से सुनना हामी भर लेना
             बहुत हैं फायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन   से   भी   खुद्दारी   की  उम्मीद   रहती   है
किसी का भी हो सिर क़दमों में सिर अच्छा नहीं लगता

             बुलंदी पर इन्हें   मिट्टी की खुशबु  तक  नहीं आती
             ये वो शाखें हैं कि जिनको शज़र अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाकी रहे आतिशजालों ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता


रविवार, 15 जनवरी 2012

दवा............







मिलता था कभी मुझसे अकेले में वो शक्स...
न जाने क्यूँ मिले बिना ही शाम हो गयी !
 
                            इस तरह वो गया बेरहम मुझको छोड़ कर...
                            साँसें गयी यूँ थम कि मेरी जान ही गयी..!
 
हो जाती है जैसे जुदा इस जिस्म से ये रूह..
होकर जुदा उससे ये अब जान मैं गयी !
 
                            न जाने किस खता की सजा उसने दी मुझे..
                            की कोशिशें बहुत मगर नाकाम ही  गयी !
 
जो उसने दी सजा  तो वो  इनाम हो गयी..
मरने की दी दवा तो बड़ा काम कर गयी !
 
 
 
बोधगया
१६-०१-२०१२
 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

एक मुलाक़ात........






वो अधूरी सी मुलाकात अभी बाकी है,
मेरे हाथों में अभी तेरी नमी बाकी है !
 
चाहा था तुमने जो कहना और जो कह न सके,
उन  सभी  बातों  की  वो बात अभी  बाकी  है !
 
उतर के आ गयी थी आँखों में जो नमीं तेरी ,
तेरी उन आँखों की बरसात अभी बाकी है !
 
मेरे हाथों को छूके खुद  ही शरमा जाना तेरा,  
मेरे  हाथों में  वो मीठी सी छुअन  बाकी है !
 
लौट  आयेंगे वो  लम्हात  कभी फिर तन्हा,
ऐ मेरे दोस्त ! वो मुलाकात अभी बाकी है !

सोमवार, 9 जनवरी 2012

आंसू........




वो आंसू जो कभी बिन बुलाये ही आँखों में आ जाते हैं
वो आंसू जो हंसते हुए भी कभी चुपके से छलक जाते हैं
किसी के जाने के दर्द को जब हम सह कर भी सह नहीं पाते हैं....
तो क्या करें....................................................................?

कुछ  कहने  से पहले ही जब लफ्ज़  गले में अटक जाते हैं
तब कुछ न कह कर भी हमारे आंसू ही  सब कह जाते हैं
किसी की शक्ल को जब हम चाह कर भी भुला नहीं पाते हैं
तो क्या करें...............................................................??

कुछ आंसू हैं जो  हमारी पलकों  पर  ही  थम जाते हैं
कुछ आंसू जो आँखों में चाह कर भी आ  नहीं पाते हैं
कुछ आंसू जो अनजाने ही हमारे गालों पे लुढ़क जाते हैं
तो क्या करें...........................................................???


दिल्ली
१०-०१-२०१२  

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

तुम मुझे इस तरह पा सकते हो....

  
 
तुमने कहा था...
तुम मुझे पाना चाहते हो
अपने आस-पास,
मुझे छूना चाहते हो !
मुझे नज़दीक से
महसूस करना चाहते हो !
तुम्हें नहीं पता....
मैं तो हूँ हर वक़्त
तुम्हारे पास,तुम्हारे साथ !
बस.....
तुम्हें महसूस करना होगा मुझे !
मैं साँसों की तरह  
तुम्हारी हर सरगोशी में हूँ !
मैं धड़कन की तरह
तुम्हारे दिल के बहुत नज़दीक हूँ !
हथेली की गर्माहट की तरह
तुम्हारी हलकी सी छुअन में हूँ ! 
तुम्हारे क़दमों के तले 
सूखे पत्तों की सरसराहट में हूँ !
तुम्हारे बदन को छूती हुई
ठंडी हवा की सुगबुगाहट  में हूँ !
तुम्हारे गम में  हूँ.. 
तुम्हारी मुस्कराहट में भी हूँ !
किसी परेशानी में आयी
तुम्हारे माथे की चंद बूंदों में भी हूँ !
तुम्हारी हमकदम,तुम्हारी हमसफ़र
हर जगह,हर वक़्त,तुम्हारे साथ....!
ध्यान से देखना मैं ही तो हूँ..!!

बुधवार, 4 जनवरी 2012

अनकही बातों का लिखित दस्तावेज़.........

कुछ लिखा है इसमें
गर आप पढ़ सकें तो.....
०४-०१-२०१२



कई बार मन में
शब्द उमड़-घुमड़ के
जुड़ते से चले जाते हैं
अपने-आप ही,
और अनजाना,अनमना सा
कुछ बनता जाता है
अपने आप ही...!
मन चाहता है कि उतार दे
मन की इन बातों को कहीं...
कभी लिख कर
या फिर कम से कम
किसी से share ही कर ले...
लेकिन न वो पन्ने ही मिलते है
जिस पर हम लिख सकें...
और न ही वो शख्स ही...
जिससे हम मन की बात कह सकें..
और सब अनलिखा,
अनकहा सा.....
रह जाता है हमारे साथ ही....!