समंदर हूँ, कभी सहरा रही हूँ..
तेरी आँखों का रंग गहरा रही हूँ..!
ज़माने ने जिसे देखा नहीं है..
मैं तेरे रू ब रू चेहरा रही हूँ..!
लबों की सुर्खियाँ लबरेज़ शबनम..
गुलों में शहद का कतरा रही हूँ..!
मैं बन कर ख़्वाब रंगी ज़िन्दगी के..
तेरी नज़रों में भी लहरा रही हूँ..!
कभी थी रात की मानिंद 'पूनम'..
अगरचे चाँद को ख़तरा रही हूँ..!
***पूनम***