गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

बस मैं......




मैं हूँ बस अपने तरह की ही....
न किसी से मिलती-जुलती,
न किसी की तरह,
होना ही चाहती हूँ मैं ! 
लोग न जाने क्यूँ....
मिलाना चाहते हैं मुझे
किसी न किसी से....
किसी के चेहरे से,
किसी के व्यवहार से,
किसी के व्यक्तित्व से,
किसी के विचार से,
या फिर अपने ही
सोच,विचार और व्यवहार से !
खुद तो चाहते नहीं
कि वो भी बदलें
अपने आप को कुछ-कुछ.....
लेकिन औरों को बदलने की
चाहतें सुगबुगाती रहती हैं
उनके दिल में हर वक्त !
क्या करें बेचारे....???
अपने ही दिल से मजबूर हैं...
और मैं भी क्या करूँ...?
खुद को इतना बदलने के बाद
लगने लगा कि....
मुझमें से मैं ही
निकल गयी हूँ कहीं दूर !
जिसके साथ, जिसके लिए
निकली थी मैं....
वो ही दूर हो गया मुझसे !
और जब उसी की
कुछ बातों ने झकझोर दिया
एक दिन अचानक मुझे
बाहर-भीतर तलक...
तो लगा कि
किसी के लिए
दूसरों की तरह होना
अपने-आप से नाइंसाफी है....
और फिर u turn.........!!
और आज मैं हूँ....
बिलकुल अपनी तरह,
न किसी की हमशक्ल,
न किसी की तरह !
बस........
खुदा की बनाई
फ़क़त एक  
"single piece........"

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

बस तुम.........


२६-१२-२०११



मैंने खुशबू की तरह
तेरे होने के एहसास को
अपने इर्द-गिर्द
कुछ ऐसे फैला लिया है
कि चाहूँ भी तो
कोई दूसरी महक
आ ही नहीं पाती
मेरे पास...........


*******************


तेरे होने का
एहसास ही बहुत है
मेरे लिए !
कम से कम
यह तो हुआ
कि मैं अकेली
नहीं रह गयी
खुद अपने ही लिए....

*************************

लोग तो
साथ रहते हुए भी
न जाने कितनी दूरियां
बना लेते हैं...
मन ही मन !
और एक हम हैं
कि तुझे मन से ही
अपना मान बैठे हैं
दूर से ही....







सोमवार, 26 दिसंबर 2011

मुट्ठी भर धुप......



 २४-१२-२०११

 

मुट्ठी भर धूप

चुरा के रखी थी

न जाने कब से

सबकी आँख बचा के...

आज मैंने बिखरा दी है

अपने आँगन में !

क्या करें...

इतनी सर्दी है,

सूरज भी तो

नहीं आता आज कल

गर्मी देने.....

न जाने  कहाँ

छुपा रहता है जालिम.....!!

रविवार, 25 दिसंबर 2011

तेरा होना......





अश्क बन जाऊं तो आँखों में छुपा सकता है !
दर्द बन जाऊं तो गीतों में  बदल  सकता   है !!

बनूँ   मुस्कान तो   होठों पे सजा   सकता   है !
बनूँ धड़कन तो अपने दिल में छुपा सकता है !!

गर बनूँ मोती गले मुझको लगा सकता है !
या बनूं फूल तो दामन से लगा सकता है !!

बन गयी खुशबू तो तू खुद भी महक सकता है !
जानती  हूँ   मुझे  तू दिल  से लगा सकता   है !!

मेरे  हमराज ! मेरे  दोस्त ! तेरे  इक होने  से !
मेरे  जीवन  का  हर अंदाज बदल सकता है !!

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

बस मैं हूँ और.....





अजनबी है कोई फिर भी वो अपना लगता है ! 
उससे न जाने कौन सा,कैसा रिश्ता लगता है !!

 दूर रह कर भी कोई आस-पास लगता है  !
मुझमें ही रहते हुए मुझसे जुदा लगता है !!

चलते-चलते मेरे कानों में कुछ कह जाता है !
सोते - सोते मुझे चुपके से जगा  जाता   है !!

हँसते - हँसते मेरी आँखों में वो बस जाता   है !
दिल में धड़कन की तरह छुप के उतर जाता है !!

मैं हूँ, बस मैं हूँ, कोई साथ नहीं है मेरे !
मेरी  तन्हाई  है, एहसास   हैं हमदम मेरे !!

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कौन हो तुम...??




तुम कौन हो मेरे..?
न मैं जानूँ, न जानना चाहूँ..!
तुम क्या हो मेरे...?
न मैं मानूँ, न मानना चाहूँ..!!
पास हो इतने कि...
छू लूँ तुम्हें जब भी चाहूँ..!
आँख भी कर लूँ बंद
इन पलकों में तुम्हें ही पाऊँ..!!
कौन हो तुम...??
तुम ही कुछ बोलो...
कुछ तो बोलो.....!!

२१-१२-२०११
०१.०५ रात्रि. 

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

ये बातें....


१८ जन.१९८३


अभी तक
सुनती आयी थी कि
हवाएं गुनगुनाती हैं,
पर्वत बोलते है,
घाटियाँ खिलखिलाती हैं
पर मैं इन सब से अनजान थी
इनकी बोली,गुनगुनाहट,खिलखिलाहट
कुछ भी नहीं सुन पायी..
अपनी ही धुन में.
अपने आप में ही खोयी रही ! 
लेकिन अब...
तुमसे मिलने के बाद
अपने आप को जब भी 
अकेली पाती हूँ मैं, 
तब...
इन्हीं हवाओं,पर्वतों और घाटियों से  
घिरा पाती हूँ अपने आप को 
और न जाने कितनी देर तक
बातें करती रहती हूँ मैं
चुपचाप...........!!

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

एक किरण....







भोर की लाली के साथ
एक किरण चमकी
आशा की....
चहचहाती चिड़ियों ने
एक नया सुर दिया मेरे जीवन को !
सुगन्धित पवन ने
फूंक दिए प्राण
मेरे तन-मन में
और....
रात की सारी व्याकुलता
एकबारगी
दूर हो गयी
यह सुन कर कि
तुम आने वाले हो......!!

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

अशआर.....कुछ यूँ भी....!!

 
अशआर  मेरे यूँ तो ज़माने   के लिए   हैं !
कुछ शेर फ़कत तुझको सुनाने के लिए हैं !!

मेरी ज़रूरतों पे रहा मुझसे *बदगुमान !
एहसास तेरे यूँ   तो जमाने के लिए हैं !!
(*किसी के प्रति बुरी धारणा रखना) 

औरों के लिए लफ़्ज़ों में बरतता है एहतियात !
दे  दीं   दुहाइयां   ये   सजा   मेरे   लिए   है  !!

दुश्मन को भी न दे ऐसी सजा मेरे हमसफ़र !
रिश्ते बहुत से यूँ   तो   निभाने  के लिए  हैं !!

गर इश्क है दिलों में खा लें सूखी रोटियां !
पकवान यूँ तो ढेरों जमाने भर के लिए हैं !!

कायल हूँ तेरी*फ़ित्न:अन्दाजी पे मेरे दोस्त !
वर्ना बहुत  से दोस्त जमाने   में पड़े   हैं !!
(*इधर की उधर लगाने की आदत,भड़काना)

गर दो दिलों में इश्क हो तो बनता है रिश्ता !
वर्ना  बहुत से जिस्म   बाजारों   में  पड़े   हैं !!

दौलत के बल पे कौन खरीद पाया है ख़ुशी !
गर  मिल  गए  हों दिल  ख़जाने  खुले  पड़े हैं  !!

1 दिसंबर,2011