सोमवार, 26 सितंबर 2011

 
 













तू और मैं.......



ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं  कुछ इस तरह,
रोते-रोते भी हंस दिए हैं हम  कुछ इस तरह !
चाहा  के  तुझको  छुपा  लूं   मैं  कहीं  इस तरह,
मैं ही मैं देखूं जमाने से छुपा कर  इस तरह !! 

तू था खुशबू की तरह,बिखरा जो फिर,छुप न सका,
बस मेरे दिल में रहे,ये भी तो तुझसे हो न सका !
रूह से अपनी जुदा   सोचा  कभी  कर दूं    तुझे ,
बन हया चमका जो नजरों में मेरी,छुप न सका !! 

चाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
गुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे  सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे  आगोश में  आकर  कभी मैं  सो न सकी !!

आज है वो रात ,मैं  हूँ कहाँ और तू है कहाँ, 
बदले  हालात हैं और  बदल गए  दोनों  जहाँ !
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
दो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!  

मंगलवार, 20 सितंबर 2011


 
 
आकर्षण..........
 
 
जिन्दगी के इस
उतार-चढ़ाव में भी
रहते हैं दोनों साथ-साथ....
कभी-कभी मौन,
तो कभी कुछ बुदबुदाते,
कुछ चीखते-चिल्लाते...
बहे चले जा रहे हैं
एक-दूसरे का
हाथ पकड़े हुए
जोर से..
छोड़ने की चाह में
बंधन और कसता जाता है...!
कुछ है जो उन्हें एक-दूसरे से
जुदा नहीं होने दे रहा है...!
दोनों ही समर्पित खुद को,
साथ-साथ एक-दूसरे को भी, 
विपरीत का बंधन भी
आकर्षण से कम नहीं...!
 

गुरुवार, 15 सितंबर 2011




मुक्ति.....



कभी-कभी-
जीवन में.....
कितनी सहजता से
मुक्ति मिल जाती है
हर चीज़ से...
कि आप कल्पना नहीं कर सकते है,
जब तक-
आप किसी चीज़ को पकड़ कर
रखने कि कोशिश करते  हैं,
तो उसके छूटने पर
आपको दर्द और दुःख का
एहसास होता है.
जब हाथ ही खुला हो
तो छूटने का या--
छोड़ने का दर्द नहीं होता..
हथेली पर,
और उसके एहसास को
आप हमेशा महसूस कर सकते हैं !!
बंद मुट्ठी
खुलने पर तनाव का
एहसास दिलाती है !!
फिर  बात हथेली की हो
या दिल की...............!!!

गुरुवार, 8 सितंबर 2011




दोहरापन....


मन की बातों को
समझना और जानना 
दोनों ही बड़ा कठिन है..!!
ऊपर-ऊपर  के हमारे शब्द
जब हमारे भावों से
मेल न खाएं,
शब्द कुछ कहें
और चेहरे के भाव
कुछ और ही बताएं
तो........
कहीं कुछ चुभता है
एक छलावे का एहसास सा
करा जाता है मन को.....!
जो लोग जीते हैं
दोहरी जिन्दगी को...
दोहरे एहसास को...
हर पल, हर वक़्त
उनके लिए तो
आसान है ये सब ,
लेकिन जिनके लिए
मन के एहसास ही   
जिंदगी भी हों ,
उनके लिए मुश्किल है
ऐसी दोहरी नीति,दोगलापन !
और फिर.... 
सारी बातें,सारे स्पर्श
झूठे लगते है तब !!
जब हम कुछ कहें
और  हमारे चेहरे के भाव,
आँखें और खोया-खोया सा
ये मन कुछ  और कहे ...
तब.....!!