मेरी हथेलियाँ
अभी तक नम हैं,
उनकी गर्मी में
घुल गयी है
तेरी हथेलियों की नमी !
ये वो नमी है जो
दे जाती है मेरी आँखों को
एक अजीब सी ख़ामोशी...
तुम्हारी आँखें भी तो
कहती हैं मुझसे कुछ
अनकहा सा....
अनबूझा सा..
और कहना चाह कर भी
मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
बस यहीं पर...
मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
अपने सारे लफ़्ज़ों को
बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!
सुन्दर...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
thahr gaye they
जवाब देंहटाएंab phir se chalne lago ho
kab daudoge
intzaar karenge
कहना चाह कर भी
मैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
बस यहीं पर...
मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
अपने सारे लफ़्ज़ों को
बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!
wo kyaa kah rahaa hai
chup chaap suntee rahtee hoon!!!!!!
nice lines..
जवाब देंहटाएंऔर चुप रहकर सब कुछ बयाँ कर देती हैं..
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की गहराई से लिखी
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना है
सच कई बार लफ्ज़ और अलफ़ाज़ खो जाते हैं जज्बातों में......बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
अंतर्मन की गहराई से लिखी
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना है
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा /
Unke hathon ki nami kamjor kar degi hai ... Bhavpoorn ... Bahut khoob ...
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa.
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की गहराई से लिखी सुन्दर भावपूर्ण रचना है
जवाब देंहटाएंBy sangita on नमी ...... at 7:44 AM
सुन्दर और शानदार .
जवाब देंहटाएंभावनाएँ ऐसी ही होती हैं...शब्दों की पकड़ से बाहर...
जवाब देंहटाएंbahut ache shabd tanhayi .
जवाब देंहटाएं.me bate karne ke liye ...aabhar ...
aap sabhi ka shukriya..
जवाब देंहटाएंऔर कहना चाह कर भी
जवाब देंहटाएंमैं निरुत्तर हो जाती हूँ !
बस यहीं पर...
मैं अपने सारे ज़ज्बातों को.
अपने सारे लफ़्ज़ों को
बेबस और कमज़ोर पाती हूँ !!
...
बहुत प्यारी लगी आपकी बेबसी !! :)