बुधवार, 4 जनवरी 2012

अनकही बातों का लिखित दस्तावेज़.........

कुछ लिखा है इसमें
गर आप पढ़ सकें तो.....
०४-०१-२०१२



कई बार मन में
शब्द उमड़-घुमड़ के
जुड़ते से चले जाते हैं
अपने-आप ही,
और अनजाना,अनमना सा
कुछ बनता जाता है
अपने आप ही...!
मन चाहता है कि उतार दे
मन की इन बातों को कहीं...
कभी लिख कर
या फिर कम से कम
किसी से share ही कर ले...
लेकिन न वो पन्ने ही मिलते है
जिस पर हम लिख सकें...
और न ही वो शख्स ही...
जिससे हम मन की बात कह सकें..
और सब अनलिखा,
अनकहा सा.....
रह जाता है हमारे साथ ही....!

20 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन न वो पन्ने ही मिलते है
    जिस पर हम लिख सकें...
    और न ही वो शख्स ही...
    जिससे हम मन की बात कह सकें..

    हाँ सब अनकहा अनलिखा हमारे साथ ही रह जाता है क्योंकि हर बात हर किसी से शेयर भी नहीं की जा सकती और हर कोई उस लायक भी नहीं होता जिससे हर बात की जा सके।

    बेहतरीन रचना।


    सादर

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  2. ati sargarbhit v samvedansheel post hae poonam ji .mere blog par aapka svagat hae .

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  3. जो न लिखा है उसे भी पढ़ गए
    इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

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  4. बहुत बढ़िया...
    शायद ऐसा सब के साथ होता है कभी ना कभी..
    शुभकामनाएँ.

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  5. क्योंकि , हर बात न तो , हर किसी से कही जा सकती और न हर कोई उस लायक होता , जिससे हर बात की जा सके.... लेकिन , अपने जिंदगी एक ऐसा होना चाहिए , जिससे हर बात की जा सकें... :):)

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  6. बहुत सुन्दर और कसक भरी रचना है...

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  7. धन्यवाद.....
    हम सबकी खोज जारी है....!
    एक ऐसे ही शख्स के लिए....!!

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  8. सच कहा है ... और ये अन कहा ही दर्द बन के उतर जाता है नज़्म में ...

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  9. सबसे पहले तो शीर्षक बढ़िया लगा........फिर कहा न हमने अगर आप अपना माने तो अपने मिल ही जाते हैं............हाँ एक बात पोस्ट के अक्षरों का रंग थोडा गहरा रखें........आँखों को तकलीफ होती है हलके रंग में|

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  10. sach kaha,itna apna kahan koi hota jisase apni baat baanti ja sake, isliye ankaha rah hi jata hai. sundar abhivyakti.

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  11. सब अन कहा अनलिखा रह जाता है हमारे ही साथ ....और घुमड़ता रहता है
    मन ही मन
    फिर यकायक
    बन जाता है
    कोई दर्दभरा गीत या....कोई छंद ...बह निकलती है शब्दों की धारा ...हो जाता है मन हल्का ...फूल सा

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  12. हर किसी के साथ ये अनुभव जुड़ा होता हैं,पर यही होता हैं जो आपने कही है-लेकिन न वो पन्ने ही मिलते है
    जिस पर हम लिख सकें...
    और न ही वो शख्स ही...
    जिससे हम मन की बात कह सकें..
    और सब अनलिखा,
    अनकहा सा.....
    रह जाता है हमारे साथ ही....!!

    आभार

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  13. आज आपकी यह रचना नई पुरानी हलचल पर देखी शीर्षक पढ़ते ही पढे बिना रहा नहीं गया क्यूंकि आपने तो सभी के मन कि अनकही बातें कह डाली आभार :)

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  14. jab shabd dikhte nahi to bade chubhte hain..ye maun ki bhasha hai virle hi samajh paate hain...bahut sundar bhaav...

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  15. कई बार जब पन्ने मिलते हैं तो हम उनपर बिना लिखे ही कुछ उनको पलट देते हैं ....ठीक ही कहा आपने शायद वो पन्ने 'वो' नहीं होते ...जिनपर हम कुछ लिखना चाहते हैं ....बहुत सुंदर रचना पूनम जी !!

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