शनिवार, 28 जनवरी 2012

अच्छा नहीं लगता.......

इस बार 'जावेद अख्तर साहेब' की एक ग़ज़ल यहाँ पर आप सबों के लिए ले आई हूँ ! बहुत दिनों से सोच रही थी कि कहाँ लिखूं फिर "तुम्हारे लिए"  से बेहतर जगह नहीं मिली....!
कहाँ सुनी, कहाँ देखी, याद नहीं....बस सुन कर  अच्छी लगी और लिख डाली.....!!
उम्मीद है कि आप सबों को पसंद आएगी.....




जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रास्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

             गलत बातों को खामोशी से सुनना हामी भर लेना
             बहुत हैं फायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन   से   भी   खुद्दारी   की  उम्मीद   रहती   है
किसी का भी हो सिर क़दमों में सिर अच्छा नहीं लगता

             बुलंदी पर इन्हें   मिट्टी की खुशबु  तक  नहीं आती
             ये वो शाखें हैं कि जिनको शज़र अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाकी रहे आतिशजालों ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता


21 टिप्‍पणियां:

  1. बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की खुशबु तक नहीं आती
    ये वो शाखें हैं कि जिनको शज़र अच्छा नहीं लगता
    bahut khoob.

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  2. वाकइ दिल को छू जाने वाली है...

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  3. बहुत ही बढ़िया

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  4. गलत बातों को खामोशी से सुनना हामी भर लेना
    बहुत हैं फायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता ..

    Javed Akhtar saahab ki lajawab gazal ... mazaa aa vaya ... bahut shukriya ise lagaane ke liye ..

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  5. जावेद साहब की बहुत खूबसूरत गज़ल .. आभार

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  6. jaaved saahab ki ghazal bahut dino baad padhi bahut achcha laga.umda ghazal.

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  7. बहुत सुन्दर गज़ल...
    सांझा करने के लिए शुक्रिया..
    माँ सरस्वती की आप पर कृपा बनी रहे..
    शुभकामनाएँ वसंतोत्सव की..

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  8. बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की खुशबु तक नहीं आती
    ये वो शाखें हैं कि जिनको शज़र अच्छा नहीं लगता

    waah behtareen laga ye sher

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  9. sundar gazal hai,
    blog world mein aapkaa badhtaa interest prashansniy hai,
    just kee it it on....

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  10. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।

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  11. कल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है
    किसी का भी हो सिर क़दमों में सिर अच्छा नहीं लगता

    ये शेर सबसे अच्छा है ......हमारे जैसे लोगो के माफिक ही है क्यूँ पूनम दी :-)

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  13. ये क्यूँ बाकी रहे आतिशजालों ये भी जला डालो
    कि सब बेघर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता

    bhehtareen..
    nice one..

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  14. अच्छी गज़ल का चयन किया है ..और पसंद तो आपकी अच्छी है ही !

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