तेरी छत पे था चमका एक तारा...
न जाने किस लिए तुमने
पुकारा..!
न था वो चाँद मेरा
आशना यूँ...
मगर तुमको भरोसा कब
हमारा..!
तुम्हारी राह पर नज़रें
बिछायीं...
कुसूर इतना ही था केवल
हमारा..!
जमाना देखता है जिसको हरदम..
वही महबूब होगा अब हमारा..!
निगाहों में कोई तो
ख्वाब आये...
कोई तो राज़दां हो अब हमारा..!
वाह !!! बहुत खूब सुंदर गजल !
जवाब देंहटाएंनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
bahut khub di
जवाब देंहटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (22-09-2013) के चर्चामंच - 1383 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंवाह............
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना | आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है | आप भी आयें |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
तुम्हारी राह पर नज़रें बिछायीं...
जवाब देंहटाएंकुसूर इतना ही था केवल हमारा..
प्रेम में ऐसे करूस तो हो ही जाते हैं ... पर मंजिल मिल जाए तो सब कबूल ...