रविवार, 10 फ़रवरी 2013

नज़रें......








शम्मा जब दिल में जले और हो उजाला हर तरफ....
यार की ऐसी नज़र हो जाये तो क्या कीजिये....!!

उस नज़र के लाख सदके जो उठे जानिब मेरी...
गर रहे न कुछ खबर खुद की तो फिर क्या कीजिये...!!

उस गली से हम भी गुजरे थे कई शाम-ओ-सहर...
कोई भी खिड़की नहीं खुलती तो फिर क्या कीजिये...!!

हम तो सदियों से तेरी आवाज़ को तरसे सनम...
तेरी ही आवाज़ हो खामोश तो क्या कीजिये....!!

मेरी नज़रें जब कभी नज़रों से मिल जाये तेरी  
और झुक जाये यूँ ही शरमा के तो क्या कीजिये...!!






8 टिप्‍पणियां:

  1. उस नज़र के लाख सदके जो उठे जानिब मेरी...
    गर रहे न कुछ खबर खुद की तो फिर क्या कीजिये...

    ये उस नज़र का कसूर है की कुछ ओर ... बहुत खूब लिखा है ...

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  2. भावपूर्ण रचना

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