सोमवार, 30 अप्रैल 2012

जुस्तजू..........








फलक पे चाँद-सितारे भी साथ देते हैं...
कभी तो हाथ बढ़ा कर उन्हें छुआ होता..!!


                                         जमीन है तो मयस्सर यहाँ  सभी के लिए...
                                         बस आसमान में चाहें तो घर नहीं होता..!!


अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!


                                         तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
                                         मैं तेरे पास रहूँ  बस यही नहीं होता...!!


जानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
गा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!





29 टिप्‍पणियां:

  1. पूनम जी , अब इससे बढ़के ग़ज़ल का प्रारूप क्या हो सकता है सारे हालात ग़ज़ल लिखने के बने हुए हैं .



    अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
    कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!


    तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
    मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!

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  2. naa huyee khwaaish aaj tak kisi kee
    gaa nahee saktaa tarannum mein to kyaa huaa
    kam se kam saath to rahtaa

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  3. जमीन है तो मयस्सर यहाँ सभी के लिए...
    बस आसमान में चाहें तो घर नहीं होता..!!

    तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
    मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!


    बहुत खूबसूरत गजल ....

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  4. वाह! अच्छी जुस्तजू है.
    खूबसूरत प्रस्तुति.

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  5. अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
    कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!

    वाह !!! बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  6. बहुत ही बढ़िया गजल है....
    बेहतरीन भाव....

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  7. वाह वाह......................

    अरे इतनी वाहवाही से जी नहीं भरा............
    वाह वाह..................वाह वाह...

    जानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
    गा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!

    बहुत सुंदर पूनम जी.........

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  8. अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
    कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
    यकीनन
    बहुत सुन्दर गज़ल

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  9. मौसम दो ही हैं इस इश्क के
    एक तू और एक मैं
    सौदा जो करना हैं ,
    करना हैं संभाल के |.......अनु

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  10. अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
    कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!

    तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
    मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!

    waah maza aa gaya ye gazal padh kar.
    ye taste bhi apka itna damdaar hai kamaal hai.

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  11. अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
    कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..

    लुत्फ़ के साथ साथ गम भी बहुत होता है .... उअर उसमें भी एक लुत्फ़ ही छिपा होता है ...

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  12. बहुत अच्छा लगा पढकर ! मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  13. जानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
    गा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!
    बहुत सुंदर लिखा है ....
    सीधे ह्रदय तक पहुंची है बात ....!!
    शुभकामनायें ...!!

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  14. विश्वास सा नहीं होता ...
    यह रचना इतनी ही अच्छी है !
    आपको बधाई !

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  15. shabd khoj raha huN, abhi safalta nahi mili hai... tareef ke liye kya kahuN.. muskura- bhar deta hun.. na jane aisa kyuN prateet hua ki maiN jo kehna chahta huN wahi apne kaha :-)

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  16. उसने सुन कर गज़ल कहा कि गज़ल खूब क्या गाई है,
    चाँद समझ ना सका झील में उसकी ही परछाई है.
    जिसने छूकर चाँद सितारे , खुद को बना लिया तारा
    देख रहा अपनी दुनियाँ जो उसके लिये पराई है.

    भाव पूर्ण गज़ल जिसे पढ़ कर अपने आप ही गज़ल बनने लगती है.आभार.

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