फलक पे चाँद-सितारे भी साथ देते हैं...
कभी तो हाथ बढ़ा कर उन्हें छुआ होता..!!
जमीन है तो मयस्सर यहाँ सभी के लिए...
बस आसमान में चाहें तो घर नहीं होता..!!
अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!
जानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
गा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!
पूनम जी , अब इससे बढ़के ग़ज़ल का प्रारूप क्या हो सकता है सारे हालात ग़ज़ल लिखने के बने हुए हैं .
जवाब देंहटाएंअजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
कि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!
sahi kahte hain Sir!
हटाएंnaa huyee khwaaish aaj tak kisi kee
जवाब देंहटाएंgaa nahee saktaa tarannum mein to kyaa huaa
kam se kam saath to rahtaa
जमीन है तो मयस्सर यहाँ सभी के लिए...
जवाब देंहटाएंबस आसमान में चाहें तो घर नहीं होता..!!
तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!
बहुत खूबसूरत गजल ....
वाह! अच्छी जुस्तजू है.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति.
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमैंने सिर्फ इशारा किया
Wah....bahut hi sundar....bahut khub..Behtareen bhav:-)
जवाब देंहटाएंअजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
जवाब देंहटाएंकि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
वाह !!! बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बहुत ही बढ़िया गजल है....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव....
maza aa gya
जवाब देंहटाएंवाह वाह......................
जवाब देंहटाएंअरे इतनी वाहवाही से जी नहीं भरा............
वाह वाह..................वाह वाह...
जानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
गा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!
बहुत सुंदर पूनम जी.........
आप सभी का शुक्रिया....!!
जवाब देंहटाएंwaah bahut khubsurat gazal.
जवाब देंहटाएंअजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
जवाब देंहटाएंकि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
यकीनन
बहुत सुन्दर गज़ल
शुक्रिया....
हटाएंमौसम दो ही हैं इस इश्क के
जवाब देंहटाएंएक तू और एक मैं
सौदा जो करना हैं ,
करना हैं संभाल के |.......अनु
अजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
जवाब देंहटाएंकि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..!!
तू मेरे साथ,मेरे पास यूं तो है हर वक़्त...
मैं तेरे पास रहूँ बस यही नहीं होता...!!
waah maza aa gaya ye gazal padh kar.
ye taste bhi apka itna damdaar hai kamaal hai.
ओहो.. ! नायाब....
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहद उम्दा गजल !
जवाब देंहटाएंअजीब शै है ये यारों गम-ए-मुहब्बत भी...
जवाब देंहटाएंकि जितना लुत्फ है इसमें कहीं नहीं होता..
लुत्फ़ के साथ साथ गम भी बहुत होता है .... उअर उसमें भी एक लुत्फ़ ही छिपा होता है ...
बहुत अच्छा लगा पढकर ! मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजानती हूँ,मानता है मुझे गजल अपनी...
जवाब देंहटाएंगा सके मुझको तरन्नुम में ये नहीं होता..!!
बहुत सुंदर लिखा है ....
सीधे ह्रदय तक पहुंची है बात ....!!
शुभकामनायें ...!!
Achhi gazal...
जवाब देंहटाएंविश्वास सा नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंयह रचना इतनी ही अच्छी है !
आपको बधाई !
shabd khoj raha huN, abhi safalta nahi mili hai... tareef ke liye kya kahuN.. muskura- bhar deta hun.. na jane aisa kyuN prateet hua ki maiN jo kehna chahta huN wahi apne kaha :-)
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा, बधाई.
जवाब देंहटाएंउसने सुन कर गज़ल कहा कि गज़ल खूब क्या गाई है,
जवाब देंहटाएंचाँद समझ ना सका झील में उसकी ही परछाई है.
जिसने छूकर चाँद सितारे , खुद को बना लिया तारा
देख रहा अपनी दुनियाँ जो उसके लिये पराई है.
भाव पूर्ण गज़ल जिसे पढ़ कर अपने आप ही गज़ल बनने लगती है.आभार.
शुक्रिया अरुण जी...!
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