मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

बस तुम.........


२६-१२-२०११



मैंने खुशबू की तरह
तेरे होने के एहसास को
अपने इर्द-गिर्द
कुछ ऐसे फैला लिया है
कि चाहूँ भी तो
कोई दूसरी महक
आ ही नहीं पाती
मेरे पास...........


*******************


तेरे होने का
एहसास ही बहुत है
मेरे लिए !
कम से कम
यह तो हुआ
कि मैं अकेली
नहीं रह गयी
खुद अपने ही लिए....

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लोग तो
साथ रहते हुए भी
न जाने कितनी दूरियां
बना लेते हैं...
मन ही मन !
और एक हम हैं
कि तुझे मन से ही
अपना मान बैठे हैं
दूर से ही....







12 टिप्‍पणियां:

  1. मन ही तो है जिससे दूरियाँ भी नजदीकियां लगने लगती हैं.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  2. सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति !

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  3. भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।

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  4. वाह........प्रेम का ये सुखद पहलू जो एक गुदगुदी सी देता है .......शानदार |

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  5. सभी लाजवाब ... पर अंतिम वाला जानदार ... रिश्ते पास से होँ या दूर से ... दिल से होने चाहियें ...

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  6. मैंने खुशबू की तरह
    तेरे होने के एहसास को
    अपने इर्द-गिर्द
    कुछ ऐसे फैला लिया है
    कि चाहूँ भी तो
    कोई दूसरी महक
    आ ही नहीं पाती
    मेरे पास...........

    पूनम जी स्तुत्य है ये भाव ...प्रेम का ऐसा गहन भाव वाह ! सच में एक अद्वितीय रचना आपकी कलम से !

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  7. अद्भुत प्रेम का सजीव वर्णन .................

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  8. तेरे होने का
    एहसास ही बहुत है
    मेरे लिए !
    कम से कम
    यह तो हुआ
    कि मैं अकेली
    नहीं रह गयी
    खुद अपने ही लिए...

    बहुत खूब!

    सादर

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