सोमवार, 26 दिसंबर 2011

मुट्ठी भर धुप......



 २४-१२-२०११

 

मुट्ठी भर धूप

चुरा के रखी थी

न जाने कब से

सबकी आँख बचा के...

आज मैंने बिखरा दी है

अपने आँगन में !

क्या करें...

इतनी सर्दी है,

सूरज भी तो

नहीं आता आज कल

गर्मी देने.....

न जाने  कहाँ

छुपा रहता है जालिम.....!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन यहाँ लखनऊ मे तो अच्छी धूप खिल रही है।

    मैंने सूरज से बात कर ली है...कल से नहीं छुपेगा। :)

    सादर

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  2. अरे सर्दी में तो सूरज ज़ालिम नहीं है हाँ गर्मियों में ज़रूर हो जाता है :-)

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  3. मुट्ठी भर धूप
    चुरा के रखी थी
    न जाने कब से
    सबकी आँख बचा के...
    आज मैंने बिखरा दी है
    अपने आँगन में !

    ati sundar.

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  4. अच्छा किया बिखरा दिया ...चलो अब उससे भी मुक्त हैं आप ...कुछ भी बचाने का सहेजने का झंझट ही नहीं !!

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  5. garmee mein sooraj kee shikaayat
    dil mein thandak kee chaahat
    waah kitnaa badal jaate ho tum
    mausam ke hisaab se badalte ho tum

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  7. doobne wale ko tinke ka sahara hee bahut hai...aapke paas to mutthi bhar dhoop thee..accha laga..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  8. मुट्ठी भर धूप संभाल कर रख लें सर्दियों के लिए सुंदर भाव बधाई

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  10. बहुत खूब ..! अब तो धूप खिल गई !

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  11. बहुत खूब ... मुट्ठी भर धूप कुछ तो राहत दे

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