तन की आवश्यकता हो तो...
कहीं भी पूरी की जा सकती है...
किन्तु इंसान एक ऐसा प्राणी है जो...
भावनात्मक तौर पर जुड़ना चाहता है...
वर्ना उसका हर रिश्ता समझौता है..!
नज़दीक रह कर भी..
आदमी आदमी को नहीं पहचान पाता !
हाथ मिलते हैं....
शरीर भी मिलते हैं....!
पर दिल.....???
दिल नहीं मिलते !
अगर फूल में रंगत हो,
कोमलता हो,ताज़गी हो
लेकिन खुशबू न हो...
तो वो फूल कैसा....????
संबंधों में मधुरता...
एक-दुसरे के लिए सम्मान ज़रूरी है
तभी सम्बन्ध फलते फूलते हैं...
और ताउम्र चलते भी हैं...!
झूठ, दंभ, दिखावा, बड़बोलापन
और अपशब्दता...
किसी भी सम्बन्ध को
बेवक्त और बेमौत मारने के लिए काफी है....!!
***पूनम***
शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर रचना---
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
रिश्तों को परिभाषित करती भावयुक्त सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंरिश्तों को परिभाषित करती भावयुक्त सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंसही कहा है, एक दूसरे का सम्मान करना ही वास्तव में गहरा प्रेम है..सम्मान बाहरी रूप का नहीं होता उन मूल्यों का होता है जिन्हें कोई अपना आदर्श बनता है
जवाब देंहटाएंसच कहा अहि ... रिश्ते ऐसे नहीं बनते ... मन से मन का संबंध होना, भावनात्मक लगाव होना जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंहृदयग्राही..
जवाब देंहटाएंकल 22/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत प्यारी और मन को छूती हुई कविता ..
जवाब देंहटाएंदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
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