सोमवार, 27 अगस्त 2012

न तुम समझे न समझे वो......







न तुम समझे न समझे वो ........


यही कहते थे कब से हम ..न तुम समझे न समझे वो
हमारा  दिल हमारा है... न  तुम  समझे  न समझे  वो !

हमारे  दिल तलक जाती थी  जो  राहें  मोड दीं तुमने
हुई तकलीफ अब तुमको...न तुम समझे न समझे वो !

इशारे कितने कर कर थक गए हम हो गए नाशाद
तेरी  ही  बेरुखी  थी  ये.....न तुम समझे न समझे वो !

हमारे  दिल  में अब  हम  हैं  नहीं  दूजा  यहाँ  कोई
मुबारक तुमको दिल तेरा...न तुम समझे न समझे वो !

तुम्हें  गैरों  से  फुर्सत कब....हमें अपने रकीबों  से
तेरी ही ये इनायत है.....न तुम समझे न समझे वो !


पटना.........
२६-०८-२०१२ 






6 टिप्‍पणियां:

  1. भाव-प्रवण रचना। मेरे ब्लॉग "प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  2. खुबसूरत अहसास समेटे लाजवाब पोस्ट।

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  3. हमारे दिल में अब हम हैं नहीं दूजा यहाँ कोई
    मुबारक तुमको दिल तेरा...न तुम समझे न समझे वो ..

    भाव भरी ... मासूम एहसास समेटे ... लाजवाब रचना ...

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  4. उत्तर
    1. बहुत सुन्दर सृजन , सादर
      .
      पधारें मेरे ब्लॉग पर भी , आभारी होऊंगा .

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