गुरुवार, 29 मार्च 2012

आईना.....


 


मैं हूँ आईना तुम्हारे.......
कल,आज और कल का
जिसमें तुम्हें नज़र आएगा
अपना बीता हुआ कल
साथ ही उससे जुडी स्मृतियाँ....
तुम क्या थे कल...?
और क्या ये सफ़र
तुमने अकेले ही तय किया ???
नहीं.....
न जाने कितने कदम थे 
उस सफ़र में साथ तुम्हारे..!
देख सको तो देखो....
अपना अक्स इसमें ,
बहुत कुछ कहता
नज़र आएगा ये आईना...!!
तुम्हारा आज भी
कल की ही प्रतिछाया है
तुम्हारे आज की
सारी संभावनाएं 
तुमने कल ही गढ़ डाली थीं.....
तुम्हारी आज की
परेशानियाँ,हैरानियाँ,
सुख,दुःख,प्रेम,अहम् 
सब कल की ही देन है !


देख सको तो देखो....
पर कितना समझोगे...
ये तुम जानो !
तुम्हारा आज हर कदम
कल होगा तुम्हारे साथ !
तुम्हारी आज की सोच,
तुम्हारा आज का हर क्षण,
तुम्हारे कल का निर्माण
करता जा रहा है साथ साथ !
तुम कल क्या होगे ...?
तुम भी नहीं जानते..!!
क्यूँ कि कल की ही तरह
तुम्हें अपने आज की भी
परवाह नहीं है अभी भी....!
तुम अपने लिए
जिम्मेदार रहे ही कब...!
तुम्हारे कल के लिए भी
दोषी कोई और था,
और तुम्हारे आने वाले 
कल के लिए भी
दोषी कोई और ही होगा !


इस  आईने में ...
जो अक्स उभरता है
तुम उससे हमेशा ही
नज़रें बचाते रहते हो....
क्यूंकि यह आईना
तुम्हारे सच को बयाँ
करता है तुम्हें ही...!
यह आईना तुमसे
तुम्हारी ही बातें करता है..
इसीलिए तुम...
खुद को देखने के लिए
बाहर अपनी ही परछाइयाँ
खोजते रहे हो अब तक !
ये परछाइयाँ तुम्हारे साथ
चलती तो है लेकिन...
इनका अपना अस्तित्व नहीं होता !
ये वही कहती हैं...
जो तुम कहते हो !
ये वही सुनती हैं...
जो तुम सुनाना चाहते हो !
मूक-बधिर ये परछाईयाँ
बस हाँ में हाँ मिलाना जानती हैं 
और थोड़ी दूर चल कर
ये साथ भी छोड़ देती हैं....
या फिर तुम ही 
कोई अपनी नई परछाई 
गढ़ लेते हो खुद.....!
लेकिन कब तक.....???


मैं आईना हूँ तुम्हारा
एक ऐसा मज़बूत आईना...
जो कल था,
जो आज है
और जो कल भी रहेगा...
तुम्हारे साथ,
तुम्हारे ही अक्स के साथ !
कुछ  न  बोलेगा तो भी
सब बातें करेगा तुमसे !
न कहेगा कुछ भी तो
मौन रह कर ही
सब कह देगा तुमसे !
तुम चाहो भी तो
कुछ नहीं कर सकते
क्योंकि....
इसको तोड़ना
तुम्हारे हाथ में नहीं है....!!

18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!!!
    आइना दिखा दिया आपने यथार्थ का...


    तुम अपने लिए
    जिम्मेदार रहे ही कब...!
    तुम्हारे कल के लिए भी
    दोषी कोई और था,
    और तुम्हारे आने वाले
    कल के लिए भी
    दोषी कोई और ही होगा !

    बहुत खून पूनम जी.
    सस्नेह.

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  2. * बहुत खूब पढ़ें :-) खून नहीं
    वैसे आत्मा को लहुलुहान कर दिया आपकी रचना ने...

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  3. आईना सब कुछ साफ साफ कह देता है ... सब कुछ देख कर भी हम नहीं देखना चाहते या यूं कहूँ कि सच्चाई को नहीं मानते ... बहुत अच्छी प्रस्तुति ॥ यथार्थ को कहती हुई

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  4. sach kahtaa hai aainaa
    chehre par chehraa nahee chadhaataa hai aainaa

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  5. क्योंकि....
    इसको तोड़ना
    तुम्हारे हाथ में नहीं है....!!

    waah bahut acchi pankti.....

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  6. i am totally speechless.....Haits off for this great post...superbbbbbb

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  7. jhakjhor diya hae man ko marmik post .meri nai post par aapke vichar aamantrit haen aabhar.

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  8. मैं हूँ आईना तुम्हारे.......
    कल,आज और कल का
    जिसमें तुम्हें नज़र आएगा
    अपना बीता हुआ कल
    साथ ही उससे जुडी स्मृतियाँ....
    तुम क्या थे कल...?
    और क्या ये सफ़र
    तुमने अकेले ही तय किया ???
    नहीं.....
    वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
    MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....

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  9. बहुत खून पूनम जी,बहुत ही बढ़िया .....

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  10. बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  11. सब कुछ साफ दिखाता/कहता आईना...
    सुंदर रचना...
    सादर।

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  12. बहुत सुंदर रचना

    पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं, बहुत अच्छा लगा।

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  13. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  14. तुम्हारा आज भी
    कल की ही प्रतिछाया है
    तुम्हारे आज की
    सारी संभावनाएं
    तुमने कल ही गढ़ डाली थीं......behtarin ..kavita kahin bhee apni shil se anytra nahi gayi...bahut shandaar tareeke se sargarbhit jeewan darshan..bilkul nayee soch ke sath..hardik badhayee aaaur amantran ke sath

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  15. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति...बहुत ही बढ़िया

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  16. आइना तो अक्सर वो सब दिखाना छाता है पर इंसान ही अपनी आँखें फेर लेता है ... सत्य से सामना नहीं कर पाता ...

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  17. तुम चाहो भी तो
    कुछ नहीं कर सकते
    क्योंकि....
    इसको तोड़ना
    तुम्हारे हाथ में नहीं है....!!
    ...
    आप तो अष्टधातु के बने हुए आईने निकले बेचारे सिन्हा साहब ...प्रभु उनकी रक्षा करना ! :)))

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