तू और मैं.......
ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं कुछ इस तरह,
रोते-रोते भी हंस दिए हैं हम कुछ इस तरह !
चाहा के तुझको छुपा लूं मैं कहीं इस तरह,
मैं ही मैं देखूं जमाने से छुपा कर इस तरह !!
तू था खुशबू की तरह,बिखरा जो फिर,छुप न सका,
बस मेरे दिल में रहे,ये भी तो तुझसे हो न सका !
रूह से अपनी जुदा सोचा कभी कर दूं तुझे ,
बन हया चमका जो नजरों में मेरी,छुप न सका !!
चाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
गुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे आगोश में आकर कभी मैं सो न सकी !!
आज है वो रात ,मैं हूँ कहाँ और तू है कहाँ,
बदले हालात हैं और बदल गए दोनों जहाँ !
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
दो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!
चाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
जवाब देंहटाएंगुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे आगोश में आकर कभी मैं सो न सकी !!
दिल की गहराई से निकली पंक्तियाँ दिल पर असर कर गयीं ....आपका आभार
सुभानाल्लाह पूनम जी ..........दिल जीत लिया.....वाह....वाह.......शानदार........प्रेम और विरह की इतनी गहन अनुभूति और उर्दू की इतनी खूबसूरत रवानगी में लिखी ये ग़ज़ल ...........हैट्स ऑफ इसके लिए|
जवाब देंहटाएंभावनाओं का मार्मिक प्रस्तुतिकरण ..
जवाब देंहटाएंतू था खुशबू की तरह,बिखरा जो फिर,छुप न सका,
जवाब देंहटाएंबस मेरे दिल में रहे,ये भी तो तुझसे हो न सका !
बहुत सुन्दर कविता ! विरह की व्यथा को बहुत सुन्दर तरीके से आपने उकेरा है ..
चाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
जवाब देंहटाएंगुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे आगोश में आकर कभी मैं सो न सकी !!
bahut marmik abhivyakti.
प्रेम और भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंचाहा के तुझको छुपा लूं मैं कहीं इस तरह,
जवाब देंहटाएंमैं ही मैं देखूं जमाने से छुपा कर इस तरह !!
काश ऐसा हो पाता।
सुंदर प्रस्तुती।
आज है वो रात ,मैं हूँ कहाँ और तू है कहाँ,
जवाब देंहटाएंबदले हालात हैं और बदल गए दोनों जहाँ !
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
दो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!
बेहतरीन प्रस्तुति...
खूबसूरत जज्बात
जवाब देंहटाएंआज है वो रात ,मैं हूँ कहाँ और तू है कहाँ,
जवाब देंहटाएंबदले हालात हैं और बदल गए दोनों जहाँ !
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
दो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!
जब दिल कहीं उलझ जाता है तो उसे समझा पाना बड़ा ही कठिन कार्य हो जाता है । लेकिन मुहब्बत सबके साथ नही होता है । इसलिए कह गया है -
"मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं,
ये वह नग्मा है जो हर साज पर गाया नही जाता।"
मेर पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
खूबसूरत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं.
पूनम जी नमस्ते!
जवाब देंहटाएं"गुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !"
वाह वाह वाह ....दिल में गहरे उतर गयी ये पंक्ति....
बहुत खूब ....
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
जवाब देंहटाएंदो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!
bas yahi to prem hai Poonam ji. bahut sundar rachna, badhai.
सुन्दर और सार्थक रचना के लिए बहुत- बहुत आभार .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
खूबसूरत प्रस्तुति बधाई .......
जवाब देंहटाएंचाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
जवाब देंहटाएंगुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे आगोश में आकर कभी मैं सो न सकी !!
"कुछ" लिखा है
आभार !