सोमवार, 23 मई 2011

 
 


मेरे  तुम......
 
मिट गई तेरे ह्रदय में
डूब कर सब पा लिया है !
खुद जो बढ़ कर हाथ तूने 
थाम कर अपना लिया है !!
न कभी सोचा था मैंने
तू है इतना पास मेरे !
जब,जहाँ चाहूं,तुझे पाऊँ
नयन बस मूँद मेरे !!
तू हमारा जब सहारा
फिर किनारा दूर है कब ?
बिन छुए स्पर्श कर लूं
जब,जहाँ चाहूँ वहां तब.......!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. मिट गई तेरे हृदय में
    डूब कर सब पा लिया है.

    अति सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
    मिट कर ,डूबकर सब कुछ पा लेना
    वास्तव में दिव्य अनुभव है.

    पूनम जी आपके ब्लॉग पर आकर कई बार मेने आपको अपने ब्लॉग पर आने के लिए निमंत्रित किया है.न जाने क्यूँ आपका मेरे ब्लॉग पर आना नहीं हो पाया है.मैं पुन:आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आयें.आशा करता हूँ आपको आकार निराश नहीं होना पड़ेगा.
    बहुत बहुत आभार.

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  2. पूनम जी,

    हैट्स ऑफ.....ये अहसास शब्दों में बयां नहीं किये जा सकते है......कहे कबीर मैं पूरा पाया.......बहुत खूब ......तस्वीर पोस्ट में चार चाँद लगा रही है .......लाजवाब|

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  3. पूनम जी..

    तू हमारा जब सहारा
    फिर किनारा दूर है कब ?
    बिन छुए स्पर्श कर लूं
    जब,जहाँ चाहूँ वहां तब.

    क्या बढ़िया लिखा है पूनम जी सच ही तो है..आप कभी मेरे ब्लॉग पर भी जरूर आयें..

    आशु
    http://www.dayinsiliconvalley.blogspot.com/
    http://sukhsaagar.blogspot.com/
    http://whatsupsiliconvalley.blogspot.com/

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  4. बहुत खूब .. किसी के प्रेम में डूब कर खुद को पाना आसान होता है ...

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  5. आपके आत्मविश्वास की एक झलक है इस रचना में, अच्छा लिखती हैं शुभकामनायें !!

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  6. न कभी सोचा था मैंने
    तू है इतना पास मेरे !
    जब,जहाँ चाहूं,तुझे पाऊँ
    नयन बस मूँद मेरे !!

    लौकिक और अलौकिक भावों का अनुपम संगम है यह कविता ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. आपके मेरे ब्लॉग पर आने से मेरा मनोबल बढ़ा है.मैं हृदय से आपका आभारी हूँ.

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  8. पूनम जी .....आपका अहसास बहुत प्यारा हे ...........



    छवि तुम्हारी कैसी हे दो नैनो में बसी मानो कोई संगेमरमर की मूरत जैसी हे !

    बड़ी भोली हे तुम्हारी याद आ जाती हे हमारे दिल में रोज ही पर खामोश रहा करती हे !

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  9. पूनम जी
    सस्नेहाभिवादन !

    मिट गई तेरे ह्रदय में
    डूब कर सब पा लिया है !
    खुद जो बढ़ कर हाथ तूने
    थाम कर अपना लिया है !!
    न कभी सोचा था मैंने
    तू है इतना पास मेरे !
    जब,जहां चाहूं,तुझे पाऊं
    नयन बस मूंद मेरे !!
    तू हमारा जब सहारा
    फिर किनारा दूर है कब ?
    बिन छुए स्पर्श कर लूं
    जब,जहां चाहूं वहां तब.......!!


    पूरी रचना कोट करने का पहला अवसर है …
    क्या करूं … … … रचना ने मन पर असर ही ऐसा किया है …

    इतने दिनों बाद आपके यहां आया तो कई सारी पोस्ट्स पढ़ीं … इस रचना को कई बार पढ़ा ।
    पहली बार पढ़ा , तो रोमांच हो आया … प्रेम की इतनी सुंदर हृदय को भाने वाली प्रस्तुति ! वाह !

    फिर पढ़ा , फिर पढ़ा … नये अर्थ सामने आ गए …
    ओह ! इश्क़े-मजाज़ी से इश्क़े-हक़ीक़ी तक पहुंची हुई इस रचना की तारीफ़ जितनी करूं … कम है । मुबारकबाद इस शानदार रचना के लिए !

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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