शनिवार, 16 अप्रैल 2011




तुम्हारे लिए......

वो तुम
जो मेरे साथ हो
मेरे पास हो,
हर समय
हर वक़्त,
मेरे भीतर
मेरे बाहर,
मेरे हर एहसास में..
मेरे प्यार में
मेरी खुशी में
मेरे गम में
मेरे आंसुओं में
मेरे हर ज़ज्बात में
क्या कहूं तुम्हें?
क्या नाम दूं तुम्हें ?
कौन हो तुम मेरे ?
कहना मुश्किल है ?
कोई और नहीं तुम...
मेरा हमसाया हो
बस.......!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. कोई और नहीं तुम...
    मेरा हमसाया हो

    यह अहसास बना रहे ....अंतिम पंक्ति में जाकर कविता रहस्यमयी हो जाती है ....आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं |
    बधाई और शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  3. हर एहसास में हो ..अब और क्या बचा ? अच्छी भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही शानदार! खासकर अंतिम पंक्तियां
    कोई और नहीं तुम...
    मेरा हमसाया हो
    बस.......!!

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. पूनम जी,

    बहुत सुन्दर लगे ये भाव....शानदार.....मुझे लगा यहाँ 'मेरा हमसाया हो' की जगह 'कोई और नहीं तुम.....मेरा ही साया हो.....ज्यादा अच्छा लगता.....क्यों ?

    जवाब देंहटाएं
  6. shaayad...!
    "bas..
    ek tum ho
    jo mera saya ho"
    shukriya..
    Imraan saheb !!

    aur aap sabhi logon ka bhi shukriya...!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर नज़्म है पूनम जी..........
    बाकी भी जरुर पढूंगा, वक़्त मिलने पर.........
    मेरे रचनाओं को अपना कीमती वक़्त देने का बहुत शुक्रिया.........आते रहिएगा....... :))

    जवाब देंहटाएं
  8. अहसासों का सुन्दर चित्रण..

    जवाब देंहटाएं
  9. अपने अन्दर छुपे रहस्य को शब्दों में बंधना दुष्कर कार्य होता है, अपने खूबसूरती से किया है . आभार इस रहस्यवाद से प्रेरित रचना के लिए .

    जवाब देंहटाएं
  10. मन कि आवाज़, अंतर्मन, आत्मा या फिर परमात्मा | नाम चाहे जो भी दें - मेरा हमसाया हो |

    जवाब देंहटाएं