मेरे ज़ेहन में है एक तस्वीर...
जो अभी बनानी बाकी है...!
और बचे हैं कुछ
फैले फैले से ज़ज्बात...
कुछ उड़े उड़े से ख़यालात...
कुछ बदन की सनसनाहट...
दबे होठों की मुस्कराहट...
किसी के अनजाने ही
एकाएक छू जाने भर से
एक अजीब सी सिहरन...
आसमां में उड़ते बादलों सी
किसी चेहरे की रंगत...
और भी बहुत कुछ बाकी है....
रंग भरने के लिए....!
लेकिन इस सबके लिए
बस्ते में बचे रंग....
बहुत कम पड़ जा रहे हैं....!!
पल हैं कम और भागता है जीवन ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ...!!
simit rangon se rangin banani h duniya/jivan
जवाब देंहटाएंपधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
प्रेम के रंग हर बार कम पड़ जाते हैं...यह दिल मांगे मोर..
जवाब देंहटाएंमांग लो आकाश से नीला रंग,
जवाब देंहटाएंखेतों से हरा रंग चुरा लो..
थोड़े रंग इन्द्रधनुष से ले लो....
मोर के पंखों में अपनी तूलिका डूबा लो...
तस्वीर पूरी ज़रूर करो..
:-)
अनु
प्रयास अपना होना चाहिए भरपूर रंगने का ...
जवाब देंहटाएंप्रेक के रंग कभी नहीं थोड़े पड़ते ...
ज़रासे प्यार की कमी भर है ...जो यह मिल जाये तो तस्वीर मुकम्मल हो जाये
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
गहन अनुभूति सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंअगली बार पूरी हो जानी चाहिए तस्वीर ....:))
जवाब देंहटाएंबस्ते में बचे रंग....
जवाब देंहटाएंबहुत कम पड़ जा रहे हैं....!!
शुरू तो करें ..रंग कम नहीं पड़ेंगे
प्रयत्न जारी रखे , निश्चित है तस्वीर बन जाएगी
जवाब देंहटाएंLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
जज्बातों को समेटने का संवेदनशील प्रयास एक सार्थक कविता के रूप में.
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्हह्ह ...बहुत ही खूबसूरत रचना ...बहुत खूब पूनम जी... . बहुत सी मुबारकबाद...
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