समर्पण....
मेरी ज़िंदगी में
एक ऐसा मोड़ आया
जब लगा कि
हाथ से सब छूट गया
जब अपने भी
साथ छोड़ गए थे,
उस वक़्त.....
बस तुम साथ थे !!
और मैंने सब कुछ
पा लिया था दुबारा,
वो मैं जो खो गई थी कहीं...
लगभग मृतप्राय सी...
तुम्हारे हाथ का स्पर्श पा कर
फिर से लौट आयी अपने-आप में,
और एक बार फिर से
सांस लेने लगी मैं !
और आज हर वक़्त...
हाँ !अब हर वक़्त
तुम हो साथ मेरे !!
तुम्हारे साथ मैं कितना हूँ ?
मैं नहीं जानती..!
जानना चाहती भी नहीं !!
मेरी साँसें लौटा दीं हैं
तुमने एक बार फिर !
इस सब के लिए आज
यदि मैं खुद को
तुम्हें सौंप दूं तो....
क्या तुम्हें मंज़ूर होगा....??
बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है आपकी.
जवाब देंहटाएंयह समर्पण तो बहुत ही सुन्दर और निश्छल है.
मंजूर तो होना ही चाहिये.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है पूनम जी.
क्या करूँ मजबूर हूँ
आपकी टिपण्णी का अंदाज ही निराला है.
bahut bhaav poorn abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसमपर्ण की भावना की सुंदर अभिव्यक्ति बधाई ......
जवाब देंहटाएंbahut pyara smarpan......bahut khub
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह............समपर्ण ही वास्तविक प्रेम है.......सुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंप्रेम और समर्पण का भाव लिए लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ मैं कितना हूँ ?
जवाब देंहटाएंमैं नहीं जानती..!
जानना चाहती भी नहीं !!
मेरी साँसें लौटा दीं हैं
तुमने एक बार फिर !....
यही तो है मंजिल बस यही तो पहुंचना होता है पूनम जी
...
इस सब के लिए आज
यदि मैं खुद को
तुम्हें सौंप दूं तो....
क्या तुम्हें मंज़ूर होगा....??
अब उनकी मंजूरी की भी क्या जरूरत ..अब तो बस झोंक देना है खुद को पूरा का पूरा ...अब इत्ता सा भी मत अटको मत देखो मंजूरी का मुह ....
अब आप प्रकाश में हैं पूनम जी
बहुत बहुत आभार की ये रचना पड़ने का सौभाग्य दिया आपने मुझे !!
तुम्हारे हाथ का स्पर्श पा कर
जवाब देंहटाएंफिर से लौट आयी अपने-आप में,
और एक बार फिर से
सांस लेने लगी मैं !
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है
तुम्हारे हाथ का स्पर्श पा कर
जवाब देंहटाएंफिर से लौट आयी अपने-आप में,
और एक बार फिर से
सांस लेने लगी मैं !
क्या बात कही है आपने. श्पर्ष में जो जादू है उसे शब्दों में तराशा है आपने. बहुत खूबसूरत रचना!
भावपूर्ण!
जवाब देंहटाएंबोल्ड एंड ब्यूटीफुल....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !