मंगलवार, 21 जून 2011

खामोशियाँ........



जब मिले हम
कुछ न कुछ
कहते रहे
सुनते रहे,
हाथ में
बस हाथ थामे
हम यूँ ही बैठे रहे !
क्या कहा तुमने ?
सुना मैंने ?
ये जानूं न !
शब्द यूँ ही...
निरर्थक बहते रहे !
नयन से
नयनों की भाषा
कह रही थी कुछ !
अधर से
अधरों के कम्पन
सुन रहे थे कुछ !
धड़कने दिल की
न जाने थम गयीं क्यूँ ?
मूँद कर नयनों को
काँधे सिर धरा क्यूँ ?
समझ पायी
इस मिलन को
मैं आज तक न !
क्यूँ करूँ स्नेह इतना
मैं जान पायी न !
धड़कने
बस धड़कनों को
तोलती हैं,
कुछ कहो न आज बस
क्योंकि तुम्हारी
खामोशियाँ ही बोलती हैं....!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. खामोशियाँ ही बोलती है.....सच है मुहब्बत लफ़्ज़ों की मोहताज नहीं होती .....बहुत खूब |

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  3. कुछ कहो न आज क्योकि बस तुम्हारी ख़ामोशी ही बोलती है
    क्योकि मेरे दिल की हर धड़कन बस नाम तुम्हारा बोलती है ..... बहुत सुन्दर ....पूनम जी

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  4. कुछ कहो न आज बस
    क्योंकि तुम्हारी
    खामोशियाँ ही बोलती हैं....!!

    कुछ खामोशियाँ दिल के करीब होती है

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  5. अधर से
    अधरों के कम्पन
    सुन रहे थे कुछ !

    naye naye blogs ko padhnein ki aadat aap tak le aayee.. utkrist rachna ..hardik badhayi

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  6. mohabbat ki lafz khamoshi hi hoti hai sayad...:)
    khamoshiyon me najre bolti hain......:)
    pyari see rachna......

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  8. प्यार की भाषा का अनुपम निरूपण किया है आपने.

    कुछ कहो न आज बस
    क्योंकि तुम्हारी
    खामोशियाँ ही बोलती हैं....!!

    प्यार में सब कुछ संभव है.
    आखिर यह दिल से होता है,
    जुबां कुछ न बोले तब भी
    दिल की भाषा में बातें होतीं हैं.

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  9. धड़कने
    बस धड़कनों को
    तोलती हैं,
    कुछ कहो न आज बस
    क्योंकि तुम्हारी
    खामोशियाँ ही बोलती हैं....!!
    .....
    नदी के वेग जैसा सहज है आपके प्रेम का प्रवाह और क्या कहूं कुछ प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रहते हैं ...
    आपको नमन !

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  10. "शब्द यूँ ही...
    निरर्थक बहते रहे !
    नयन से
    नयनों की भाषा
    कह रही थी कुछ !
    अधर से
    अधरों के कम्पन
    सुन रहे थे कुछ !"
    पूनम जी,
    भावनाओं से ओत-प्रोत रचना के लिए बधाई.आपने तो एक साथ ही सूर और बिहारी को साथ ला खड़ा किया है.मन को झंकृत करती रचना.

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  11. शब्दों का जादू .. मन में उतरती हुई नज़्म , क्या कहूँ .. ख़ामोशी छा गयी है जेहन में .. बस..

    आभार
    विजय
    ------------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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