सोमवार, 20 मई 2013

ख्वाब हो तुम या हकीकत....



जब भी छू लेती हूँ खाबों में तुझको मैं कभी..
हाथों  से  मेरे देर  तक तेरी  खुशबू  आए...!

दूर  से  भी तेरी आवाज़  मैं  सुन लेती हूँ.
जब कभी तू मुझे चुपके से बुलाने आये...!

मेरी  आँखों में  ये आँसू नहीं  हैं...पानी  है..
एक सूरत है जो हरदम इसमें झिलमिलाये...!

मेरे अल्फाज़ कभी सुन सके...तू मेरी जानिब
लफ्ज़ से तू नहीं आँखों से दिल में उतर जाये...!


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (21 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. दूर से भी तेरी आवाज़ मैं सुन लेती हूँ.
    जब कभी तू मुझे चुपके से बुलाने आये...

    दिल किसी की राह तकता हो ... तो उसकी हर आहट सुनाई देती है ....
    भावपूर्ण ....

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