तुम्हारे साथ थी मैं कल..
और मैं कल भी रहूंगी..
तुम्हारे साथ हूँ आज...
और हमेशा रहूंगी..
तुम्हारी सांसों में हूँ..
मैं धड़कन में रहूंगी..
तुम्हारी बात में घुल जाउंगी..
मैं बन कर मिश्री..
तेरी मुस्कान बन के
मैं तेरे होठों पे बसूंगी...
तेरे हाथों की गर्मी से
पिघलता है मेरा मन..
मैं बन के आँसू एक बार
फिर से पलकों में सजूंगी...!!
***पूनम***
सुचना ****सूचना **** सुचना
जवाब देंहटाएंसभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ
(माफ़ी चाहता हूँ समय की किल्लत की वजह से आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दे सकता।)
तेरे हाथों की गर्मी से
जवाब देंहटाएंपिघलता है मेरा मन..
-----------------------
पिघलती यादें ....
बहुत खूब ... पलकों में सपने की तरह ... आंसू की बूँद की तरह ...
जवाब देंहटाएंमरन एहसास लिए ...
बेहतरीन....प्रेम गली अति सांकरी या में दो न समाही ..
जवाब देंहटाएंतेरी मुस्कान बन के
जवाब देंहटाएंमैं तेरे होठों पे बसूंगी...
तेरे हाथों की गर्मी से
पिघलता है मेरा मन..
सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंwah poonam ji bahut hi sundar rachana ke liye hardik badhai ....sath hi holi pr hardik badhai bhi .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं