गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

.ज़रूरी तो नहीं.....





मिट रहा था जो मेरे खातिर...फरेबी था बड़ा 
इश्क हो मुझसे उसे भी....ये ज़रूरी तो नहीं...!

जो सजा लेते हैं अपनी मुस्कुराहट झूठ ही
सच ही होगा दिल में उनके...ये ज़रूरी तो नहीं...!

आज का ये वक्त..ये महफ़िल...समां...रंगीनियाँ
हों मगर तेरे ही दम से....ये ज़रूरी तो नहीं...!

मौत मेरे नाम से बस...आज यूँ शरमा गयी...
आ के ले जाये मुझे ही...ये ज़रूरी तो नहीं...!

थी खिज़ां की गर्मियां नज़दीक दामन से मेरे...
पर जला दें आशियाँ मेरा...ज़रूरी तो नहीं...!

अब नहीं हैं खैरियत मेरी ज़माने में यहाँ
आप भी माने मेरी बातें...ज़रूरी तो नहीं...!




7 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ तो कुछ ज़रूरी नहीं ,मगर यूँ होता तो क्या बात होती !!!
    :-)

    अनु

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  2. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

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  3. मौत मेरे नाम से बस...आज यूँ शरमा गयी...
    आ के ले जाये मुझे ही...ये ज़रूरी तो नहीं...!

    वाह ! बेहतरीन सुंदर गजल !

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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