मंगलवार, 19 अगस्त 2014

मेरी जान......







एक बार तुमने कहा था...
"मुझसे मिलने की एक ही शर्त है...
तुम्हारी जान मेरी ही होनी चाहिए.."
मैंने बड़ी जुगत लगाई...
लेकिन जान तुम्हारी न हो पायी...!
आज एहसास हुआ है कि
हमारी जान तो एक ही है...!
फिर भी इस बार अपनी जान
साथ ले ही आई हूँ...
और टाँग दी है
तुम्हारे ही कमरे में...
दीवार की ऊँची खूंटी पर...!
अब केवल प्रेम लेकर
एक कोने में बैठी हूँ...!
तुम्हें ज़रूरत हो जब भी
मेरी जान को...
खूंटी से उतार कर पहन लेना....!!
एकदम झक्कास लगोगे उस दिन...!!

   



***पूनम***



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