जिसकी आँखें कभी
नई नज़्म का
उन्वान हुआ करती थीं...!
जिसकी बातें कभी
झरनों की रवानी सी
बहा करती थीं...!
जिसके होठों की तलब
फूलों को रहा करती थी...!
जो तेरे दिल में कभी
धड़कन सी रहा करती थी...!
जिसके हाथों की छुअन
जिंदगी दे जाती थी...!
वो जो तेरे ख्वाबों में
हर वक्त मुस्कुराती थी...!
वो जो तुझमें ही
तेरी रूह सी बस जाती थी...
वो जो तेरे बोलों में
किसी गीत सी बज जाती थी...!
आज वो आँख भी
बेनूर हुई जाती है..!
और हर बात भी
बेबूझ हुई जाती है...!
तेरी बातों से
जो इक जिंदगी जी जाती थी
आज वो ज़िंदगी
पत्थर सी हुई जाती है...!!
नई नज़्म का
उन्वान हुआ करती थीं...!
जिसकी बातें कभी
झरनों की रवानी सी
बहा करती थीं...!
जिसके होठों की तलब
फूलों को रहा करती थी...!
जो तेरे दिल में कभी
धड़कन सी रहा करती थी...!
जिसके हाथों की छुअन
जिंदगी दे जाती थी...!
वो जो तेरे ख्वाबों में
हर वक्त मुस्कुराती थी...!
वो जो तुझमें ही
तेरी रूह सी बस जाती थी...
वो जो तेरे बोलों में
किसी गीत सी बज जाती थी...!
आज वो आँख भी
बेनूर हुई जाती है..!
और हर बात भी
बेबूझ हुई जाती है...!
तेरी बातों से
जो इक जिंदगी जी जाती थी
आज वो ज़िंदगी
पत्थर सी हुई जाती है...!!
***पूनम***
२१/०३/२०१५
२१/०३/२०१५
शायद समय का कसूर है या प्रेम की कमी ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...