शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

इक बात अधूरी सी....






दिल चाहता जो कहना वो बात है अधूरी
ख्वाबों  ने जो सजाई  बारात  है अधूरी..!

पुरवाइयों के झोंके तन मन जला रहे हैं 
तेरे बिना ओ साजन बरसात है अधूरी..!

चादर सी चाँदनी की पसरी हुई है छत पे
बेताबियाँ  बढ़ाती,  हर  रात  है  अधूरी..!

खिलते गुलों के चेहरे हमको लुभा न पाए 
तेरी  महक  बिना  हर सौगात  है अधूरी..!

क्यूँ  बोल ठहरे 'पूनम' तेरे मेरे लबों पर
क्यूँ हाय दास्तान-ए-नग़्मात है अधूरी..!



***पूनम***


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