वो लम्हा...
आज भी वहीँ पड़ा है
जहाँ तुम छोड़ कर गये थे..!
वो थी बारिश की एक शाम..
जब तुम आये थे
मुझे हमेशा के लिए अलविदा कहने..!
हमारे चेहरे को आँसुओं ने
बारिश से ज्यादा भिगो दिया था...!
लेकिन तुम्हारे आखिरी स्पर्श का एहसास
न बारिश धो पाई है और न आँसू..!!
अलविदा कहने के बाद..
तुमने मुड़ कर देखा ही नहीं..!
तुम्हारी छतरी की तरह...
मैं भी तुम्हारे इंतज़ार में
उस आखिरी एहसास के साथ
आज भी मैं वहीँ खड़ी हूँ...
जहाँ तुम छोड़ के गये थे..!!
***पूनम***
30/9/2014
तू तां मुड़ मुड़ आ जांदी आ
जवाब देंहटाएंसीने च अग लोण लई,पर
किंज समझाइये यार परदेशी नु
जेड़े मुड़ के ओंदे ई नी ...
सीने च अग लोण लई
मुखड़ा वखोंण लई.
सुन्दर रचना ...वखो वख होये प्यार का दर्द कोई सच्चा प्रेमी ही समझ सकता है.
कल 03/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंBahut sunder bhaawpurn......!!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं"तुम्हारे आखिरी स्पर्श का एहसास
न बारिश धो पाई है और न आँसू..!
आह !
मार्मिक !
भावों में डूब रहा हूं...