न तुम आते न हम मिलते जमाना भी नहीं होता
नहीं मैं होती दीवानी....तू दीवाना नहीं होता...!
न मिल पायी मुहब्बत तो हुए क्यूँ खामखाँ बिस्मिल
नहीं है गैर कोई भी....मगर अपना नहीं होता...!
न जाने क्यूँ लगी रहती है दुनिया एक उलझन में..
अगर ऐसा नहीं होता...अगर वैसा नहीं होता...!
कहीं खोये हो तुम भी और हम भी कुछ परीशां हैं...
तुम्हारा दर्द दिखता है...बयां मुझसे नहीं होता...!
ज़माने ने तो देखीं हैं...मेरे चेह्रे पे दो आँखें...
बहुत खामोश रहती हैं..अयाँ इनसे नहीं होता...!
१८/०४/२०१४
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न जाने क्यूँ लगी रहती है दुनिया एक उलझन में..
अगर ऐसा नहीं होता...अगर वैसा नहीं होता...!
वाह ! वाऽह…!
क्या सादाबयानी है !
अच्छी रचना है आदरणीया पूनम जी
शुरू से आख़िर तक शानदार ...
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
शुभकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार