गीत तुम आवाज़ मैं हूँ...!
पंख तुम परवाज़ मैं हूँ...!!
दूर तक फैली क्षितिज पर
लालिमा सी लाल मैं हूँ
तान हो तुम बांसुरी की...
बांसुरी का राग मैं हूँ...!
मैं नहीं हूँ तन अकेले
साथ मन में तू भी मेरे
मान मेरा है तुझी से
बुद्धि का परिमाण मैं हूँ...!
तेरी सांसों सी सुगन्धित
तेरी अलकों में सुशोभित
तेरी पलकों में बसी सी
एक मादक रात मैं हूँ...!
तुम मेरे मन में हो प्रियतम
फिर करूँ क्यूँ मैं ये क्रंदन
हाथ में जब हाथ तेरा
हर समय मधुमास मैं हूँ...!
हो भले जीवन ये कंटक
चाह तेरी साथ जब तक
भूल सारी व्याधियों को
एक तेरे साथ मैं हूँ...!
***पूनम***
३०/०१/२०११
मधुर .. प्रेम के गहरे एहसास से सजी रचना ...
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना!
जवाब देंहटाएंहो भले जीवन ये कंटक
जवाब देंहटाएंचाह तेरी साथ जब तक
भूल सारी व्याधियों को
एक तेरे साथ मैं हूँ...!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
आभार.
बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंवाह वाह दी बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंमधुरम्-मधुरम् !
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
तेरी पलकों में बसी सी
एक मादक रात मैं हूँ...!
आहाऽ हाऽऽ ह...
अति उत्तम !
आदरणीया पूनम जी
काफी देर से आपके घर में ही हूं..
:)
कई न पढ़ी हुई रचनाओं का आनंद ले रहा हूं...
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार