चोट खायी है दिल पर मेरे दोस्तों... अक्ल फिर भी न आई मेरे दोस्तों...!! उसकी गलियों के चक्कर लगाते रहे... उसने मुड़ के न देखा मेरे दोस्तों...!! मेरी दुश्वारियां उसने समझीं नहीं... हो गयी दूर मुझसे मेरे दोस्तों...!! रोज ख्वाबों में जन्नत बनाता रहा.. पर नज़र वो न आई मेरे दोस्तों...!! क्या कहें..कहना चाहा न कह पाए हम जब वो थी मेरे पहलू मेरे दोस्तों...!! चोट दिल पर लगी...एक उफ़ सी हुई... फिर न जाने हुआ क्या मेरे दोस्तों...!! आपकी बात 'पूनम' कहे भी तो क्या... एक चुप सी लगी है मेरे दोस्तों...!!
गीत तुम आवाज़ मैं हूँ...! पंख तुम परवाज़ मैं हूँ...!! दूर तक फैली क्षितिज पर लालिमा सी लाल मैं हूँ तान हो तुम बांसुरी की... बांसुरी का राग मैं हूँ...! मैं नहीं हूँ तन अकेले साथ मन में तू भी मेरे मान मेरा है तुझी से बुद्धि का परिमाण मैं हूँ...! तेरी सांसों सी सुगन्धित तेरी अलकों में सुशोभित तेरी पलकों में बसी सी एक मादक रात मैं हूँ...! तुम मेरे मन में हो प्रियतम फिर करूँ क्यूँ मैं ये क्रंदन हाथ में जब हाथ तेरा हर समय मधुमास मैं हूँ...! हो भले जीवन ये कंटक चाह तेरी साथ जब तक भूल सारी व्याधियों को एक तेरे साथ मैं हूँ...! ***पूनम*** ३०/०१/२०११