इस जहां में मुझ सा दीवाना नहीं...
खोजने से भी कोई मिलता नहीं...!
नींद कब से दूर आँखों से मेरी...
एक भी तो ख्वाब अब सजता नहीं !
बिन पिए मुझको नशा सा हो चला...
हूँ नशे में फिर भी मैं बहका नहीं..!
आपने अब तक न पहचाना मुझे...
था अभी तक दूर बेगाना नहीं...!
आपकी महफ़िल में हूँ रुस्वा मगर..
अश्क़ आँखों का हूँ अफ़साना नहीं...!
चाँदनी दामन में सिमटी इस तरह...
दिखता अब 'पूनम' कोई साया नहीं..!
***पूनम***
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मज़हबी या सियासी आतंकवाद " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
हटाएंगहरे जज्बात शब्दों में पिरोये हैं ...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
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