सोमवार, 18 अगस्त 2014

न जाने कैसी ये दीवानगी है.....



अजब सी राह पर ये ज़िन्दगी है
नहीं मंजिल मगर ये चल पड़ी है...!

हुआ वो इस तरह पैबस्त दिल में

नज़र आती नहीं मौजूदगी है...!

तेरी राहें हैं रौशन चाँदनी से...

मेरी राहों पे बस अब तीरगी है

कभी झाँको मेरी आँखों में आकर

न जाने कैसी ये दीवानगी है...!!

न पूछा आज तक तुमने कभी भी

ये 'पूनम' रात में क्यूँ जल रही है...!!



18/8/2014



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