गीत इक प्यार का सुना देना...
रात तारों भरी सजा देना...!
ज़िन्दगी इस तरह से गुज़री है...
मौत को जैसे रास्ता देना...!
जब मुहब्बत से कोई देखे तो...
प्यार का प्यार से सिला देना..!
कब से है इंतज़ार मुझको भी...
सामने आ के मुस्कुरा देना...!
शाम से खुल गए हैं मैखाने...
मुझको नज़रों से तुम पिला देना...!
ज़िन्दगी एक बार ही मिलती...
यूँ ही बेकार मत गंवा देना...!
तेरी फ़ुरक़त में गमज़दा कब से..
रुख से परदा जरा हटा देना...!
बात जब भी कभी चले उसकी..
दर्द दिल के सभी भुला देना...!
वो सलामत रहे हमेशा ही...
अब तो तुम बस यही दुआ देना...!
रात 'पूनम' की बात फूलों की...
चाँद दामन में यूँ सजा देना...!
***पूनम***
नहीं मिलता यहाँ दिल हर किसी से...
यही शिक़वा है मुझको ज़िन्दगी से...!
किया है इश्क़ हमने आप से ही...
बताते हैं इसे हम तो खुशी से...!
नहीं मुमकिन है मिलना आप से अब...
मुझे आलम दिखे हैं बेबसी के...!
कभी नज़रों से मिल पायीं न नज़रें..
मगर चर्चे जवां हैं आशिक़ी के...!
चमकता चाँद 'पूनम' गुफ़्तगू कर...
बहुत किस्से तेरी जादूगरी के..!
***पूनम***
2 Dec, 2018
जबसे तुमसे नज़र मिलाई है...
रात आँखों में ही बिताई है...!
बेवज़ह रूठने मनाने में...
ख़ुशनुमा शाम यूँ गंवाई है..!
नाम लब तक कभी नहीं लाये..
हमने रस्मे वफ़ा निभाई है..!
लत लगी इश्क़ की हमें यारों...
हो गयी नींद अब पराई है...!
उनके चेहरे से उठ गया पर्दा...
चाँदनी जैसे झिलमिलाई है...!
ज़िन्दगी भर जिसे नहीं भूलें...
आज ऐसी घड़ी ही आयी है...!
हम जमाने से रंज ले बैठे...
जबसे नज़रों में वो समायी है..!
दिन गुज़र जाएगा मगर 'पूनम'...
चाँद से अपनी आशनाई है...!
***पूनम***
12 नवम्बर, 2018
जिंदगी ने जो दी सज़ा क्या है...
हम भी समझें....ये माज़रा क्या है...?
अब वो रहते हमारे पहलू में..
बात बस इतनी सी...ख़ता क्या है..?
हम समझते हैं उसकी मज़बूरी...
अब समझने को कुछ रहा क्या है...?
हुस्न पर यूँ मिटे हैं परवाने...
शम्मा कहती रही...जला क्या है...?
होंठ ख़ामोश, आँख नम है ग़र...
हम समझते हैं ज़लज़ला क्या है...?
दिल लगाया...सजा मुकर्रर हो...
इश्क़ में और कुछ बचा क्या है...?
नींद आँखों में जब उतर आये...
ख्वाब का कोई सिलसिला क्या है..?
आप आये तो ये चमन महके....
गुल के खिलने का आसरा क्या है..?
चाँद गुमसुम है शबनमी 'पूनम'...
कोई कह दे ये वाक़या क्या है...?
***पूनम***
2/10/2015
समंदर हूँ, कभी सहरा रही हूँ..
तेरी आँखों का रंग गहरा रही हूँ..!
ज़माने ने जिसे देखा नहीं है..
मैं तेरे रू ब रू चेहरा रही हूँ..!
लबों की सुर्खियाँ लबरेज़ शबनम..
गुलों में शहद का कतरा रही हूँ..!
मैं बन कर ख़्वाब रंगी ज़िन्दगी के..
तेरी नज़रों में भी लहरा रही हूँ..!
कभी थी रात की मानिंद 'पूनम'..
अगरचे चाँद को ख़तरा रही हूँ..!
***पूनम***
दिल में दर्द बसा कर देखो...
हमसे आँख चुरा कर देखो...!
हार गए तो क्यूँ डरते हो...
खुद पर दाँव लगा कर देखो...!
हाल तुम्हारा बतला देंगे...
हमसे नज़र मिला कर देखो...!
बीती बातें,कल के किस्से...
सब को आज भुला कर देखो...!
पूरा चाँद उतर आएगा...
दामन तो फैला कर देखो...!
ख़्वाबों के सूने आँगन में...
यादों को महका कर देखो...!
तेरा मेरा क्या है रिश्ता...
चाहो तो आजमा कर देखो...!
'पूनम' रात, चमकते तारे...
महफ़िल ए इश्क़ सजा कर देखो...!
***पूनम***
29 जून, 2017
इस जहां में मुझ सा दीवाना नहीं...
खोजने से भी कोई मिलता नहीं...!
नींद कब से दूर आँखों से मेरी...
एक भी तो ख्वाब अब सजता नहीं !
बिन पिए मुझको नशा सा हो चला...
हूँ नशे में फिर भी मैं बहका नहीं..!
आपने अब तक न पहचाना मुझे...
था अभी तक दूर बेगाना नहीं...!
आपकी महफ़िल में हूँ रुस्वा मगर..
अश्क़ आँखों का हूँ अफ़साना नहीं...!
चाँदनी दामन में सिमटी इस तरह...
दिखता अब 'पूनम' कोई साया नहीं..!
***पूनम***