करूँ मैं क्या....मुझे आँसू दिखाना ही नहीं आता..
सबक सीखा गया तुझसे...सिखाना ही नहीं आता !
बड़ी बेदर्दियों से तुमने तोड़ा जिस तरह दिल को..
बहुत सी कोशिशें कीं पर...बनाना ही नहीं आता !
मुसलसल राह तेरे संग गुजरी तंग फिर भी..कुछ
सुकूं रहता तेरे संग...गर जमाना ही नहीं आता !
हमारे दरमियाँ अब फासले जो इस तरह से हैं,
मिटेंगे किस तरह हमसे...मिटाना ही नहीं आता !
कभी सोचा न था ये ज़िंदगी कुछ इस तरह होगी..
ज़माना भी सुने हमसे... फ़साना ही नहीं आता !
तुझे दें बद्दुआ अब हम...नहीं फ़ितरत हमारी है..
बुरी बातों को कहना और सुनाना ही नहीं आता !
***पूनम***
१२/०५/२०१४
१२/०५/२०१४
तुझे दें बद्दुआ अब हम...नहीं फ़ितरत हमारी है..
जवाब देंहटाएंबुरी बातों को कहना और सुनाना ही नहीं आता ..
बहुर खूब ... सादगी भरा शेर ... पर ऐसे लोगों को दुनिया कहाँ जीने देती है ...
तुझे दें बद्दुआ अब हम...नहीं फ़ितरत हमारी है..
जवाब देंहटाएंबुरी बातों को कहना और सुनाना ही नहीं आता !
वाह ! बहुत खूब, सुंदर गजल लिखी ....पूनम जी ...!
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