शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

तेरी छत पे था चमका एक तारा...



तेरी छत पे था चमका एक तारा...
न जाने किस लिए तुमने पुकारा..!

न था वो चाँद मेरा आशना यूँ...
मगर तुमको भरोसा कब हमारा..!

तुम्हारी राह पर नज़रें बिछायीं...
कुसूर इतना ही था केवल हमारा..!

जमाना देखता है जिसको हरदम.. 
वही महबूब होगा अब हमारा..! 

निगाहों में कोई तो ख्वाब आये...
कोई तो राज़दां हो अब हमारा..!





7 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (22-09-2013) के चर्चामंच - 1383 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. सुंदर रचना | आपके ब्लॉग को फॉलो कर लिया है | आप भी आयें |

    मेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

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  3. तुम्हारी राह पर नज़रें बिछायीं...
    कुसूर इतना ही था केवल हमारा..

    प्रेम में ऐसे करूस तो हो ही जाते हैं ... पर मंजिल मिल जाए तो सब कबूल ...

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