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कल,आज और कल का
जिसमें तुम्हें नज़र आएगा
अपना बीता हुआ कल
साथ ही उससे जुडी स्मृतियाँ....
तुम क्या थे कल...?
और क्या ये सफ़र
तुमने अकेले ही तय किया ???
नहीं.....
न जाने कितने कदम थे
उस सफ़र में साथ तुम्हारे..!
देख सको तो देखो....
अपना अक्स इसमें ,
बहुत कुछ कहता
नज़र आएगा ये आईना...!!
तुम्हारा आज भी
कल की ही प्रतिछाया है
तुम्हारे आज की
सारी संभावनाएं
तुमने कल ही गढ़ डाली थीं.....
तुम्हारी आज की
परेशानियाँ,हैरानियाँ,
सुख,दुःख,प्रेम,अहम्
सब कल की ही देन है !
देख सको तो देखो....
पर कितना समझोगे...
ये तुम जानो !
तुम्हारा आज हर कदम
कल होगा तुम्हारे साथ !
तुम्हारी आज की सोच,
तुम्हारा आज का हर क्षण,
तुम्हारे कल का निर्माण
करता जा रहा है साथ साथ !
तुम कल क्या होगे ...?
तुम भी नहीं जानते..!!
क्यूँ कि कल की ही तरह
तुम्हें अपने आज की भी
परवाह नहीं है अभी भी....!
तुम अपने लिए
जिम्मेदार रहे ही कब...!
तुम्हारे कल के लिए भी
दोषी कोई और था,
और तुम्हारे आने वाले
कल के लिए भी
दोषी कोई और ही होगा !
इस आईने में ...
जो अक्स उभरता है
तुम उससे हमेशा ही
नज़रें बचाते रहते हो....
क्यूंकि यह आईना
तुम्हारे सच को बयाँ
करता है तुम्हें ही...!
यह आईना तुमसे
तुम्हारी ही बातें करता है..
इसीलिए तुम...
खुद को देखने के लिए
बाहर अपनी ही परछाइयाँ
खोजते रहे हो अब तक !
ये परछाइयाँ तुम्हारे साथ
चलती तो है लेकिन...
इनका अपना अस्तित्व नहीं होता !
ये वही कहती हैं...
जो तुम कहते हो !
ये वही सुनती हैं...
जो तुम सुनाना चाहते हो !
मूक-बधिर ये परछाईयाँ
बस हाँ में हाँ मिलाना जानती हैं
और थोड़ी दूर चल कर
ये साथ भी छोड़ देती हैं....
या फिर तुम ही
कोई अपनी नई परछाई
गढ़ लेते हो खुद.....!
लेकिन कब तक.....???
मैं आईना हूँ तुम्हारा
एक ऐसा मज़बूत आईना...
जो कल था,
जो आज है
और जो कल भी रहेगा...
तुम्हारे साथ,
तुम्हारे ही अक्स के साथ !
कुछ न बोलेगा तो भी
सब बातें करेगा तुमसे !
न कहेगा कुछ भी तो
मौन रह कर ही
सब कह देगा तुमसे !
तुम चाहो भी तो
कुछ नहीं कर सकते
क्योंकि....
इसको तोड़ना
तुम्हारे हाथ में नहीं है....!!