
ऐतबार गर करते हो तो,शर्त लगाते क्यूँ हो..
प्यार करते हो तो,बेतरतीबी से जताते क्यूँ हो !
अपने ही प्यार के लिए माँगी थी कभी मोहलत हमसे
आज दिन है कि गैरों के आगे दामन फैलाते क्यूँ हो !!
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अगर वो गैर न थे तो इतने दिनों तक रहे कहाँ ?
जब भी आयीं मुश्किलात तो उनके भी आंसू थे कहाँ ?
जिन्दगी की मुश्किलों से जब हमने निकाल ली कश्ती...
आज किनारों पे बैठ हैं वो,फिर--हम कहाँ ? तुम कहाँ ?
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जिस्म मिल जाने से ही दिल नहीं मिलते,ऐ दोस्त !
जिस्म को छोड़ कभी दिल भी मिलाया होता...!!
आज गर खोल दिया दिल को *वरक़ की मानिंद तूने
**वरके-खाम पे अपने भी कभी गौर किया होता !!
तू क्या समझेगा मुझे,खुद को समझ पाया है क्या ?
मुझको एक ***मौजूं बना ग़ज़ल में ढाला होता !!
* पन्ना
**अंदरुनी हालात
***शेर
**अंदरुनी हालात
***शेर