रविवार, 10 नवंबर 2013

मगर हम कुछ नहीं कहते....





हुई तौहीन उल्फत में...मगर हम कुछ नहीं कहते...
नहीं हमसे मुखातिब वो...मगर हम कुछ नहीं कहते...!

कहा कुछ भी नहीं हमने...नज़र उनकी तनी क्यूँ है...
वफ़ा उनको नहीं आती...मगर हम कुछ नहीं कहते..!

वो गैरों से मिलाते आँख हैं...यूँ तो भरी महफ़िल
चुराते आंख वो हमसे...मगर हम कुछ नहीं कहते..!

यूँ उनकी बेवफाई के...यहाँ चर्चे नहीं हैं कम
हमारा दिल भी माने है...मगर हम कुछ नहीं कहते..!

कभी वो बेवफा...बैठा था मेरी बज़्म में आ कर
जुबां चाहे कहें हम कुछ...मगर हम कुछ नहीं कहते..!



***पूनम***





9 टिप्‍पणियां:

  1. कभी वो बेवफा...बैठा था मेरी बज़्म में आ कर
    किया था इंतिखाब हमने...मगर हम कुछ नहीं कहते..!
    बहुत सुन्दर .
    नई पोस्ट : फिर वो दिन

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १२ /११/१३ को चर्चामंच पर राजेशकुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है-----yahan bhi aaiye --http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/ देख कर अखबार माएं क्यों सिहरती जा रही हैं

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  3. अब आपकी इस गज़ल के लिये तो कहना ही पडेगा.......... वाह........ क्या बात है.

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  4. आपके ग़ज़ल के हर शब्द बहुत भारी लगे .....बहुत खूब !
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  5. Bahut sundar prastuti he
    Magar chumat rahe yese hi kuch na kuch kahiye

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  6. बहुत सुंदर चित्रण , भाव पूर्ण रचना , बधाई आपको ।

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  7. bahut khoobsurat ghazal hai..
    Please visit my site and share your views... Thanks

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