मंगलवार, 20 सितंबर 2011


 
 
आकर्षण..........
 
 
जिन्दगी के इस
उतार-चढ़ाव में भी
रहते हैं दोनों साथ-साथ....
कभी-कभी मौन,
तो कभी कुछ बुदबुदाते,
कुछ चीखते-चिल्लाते...
बहे चले जा रहे हैं
एक-दूसरे का
हाथ पकड़े हुए
जोर से..
छोड़ने की चाह में
बंधन और कसता जाता है...!
कुछ है जो उन्हें एक-दूसरे से
जुदा नहीं होने दे रहा है...!
दोनों ही समर्पित खुद को,
साथ-साथ एक-दूसरे को भी, 
विपरीत का बंधन भी
आकर्षण से कम नहीं...!
 

13 टिप्‍पणियां:

  1. विवाह जैसे बंधन को बखूबी बयान किया है आपने......बहुत सुन्दर पोस्ट|

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  2. विपरीत का बंधन भी
    आकर्षण से कम नहीं.

    वाह क्या बात कही है आपने.

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  3. अंतिम पंक्तियाँ रचना का सार है , बधाई

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |बधाई
    आशा

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  5. 'विपरीत का बंधन भी
    आकर्षण से कम नहीं '
    ,,,,,,,,,,,,,वाह , शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती पंक्तियाँ

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  6. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  7. बंधन प्रेम का हो तो साथ छूटता नहीं है .. लाजवाब रचना ...

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  8. वाह! रात और प्रात की यात्रा... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर...

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  9. दोनों ही समर्पित खुद को,
    साथ-साथ एक-दूसरे को भी,
    विपरीत का बंधन भी
    आकर्षण से कम नहीं...!

    सुन्दर अभिव्यक्ति ... यह समर्पण ही है तो आकर्षित करता है

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  10. पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं
    वाकई बहुत अच्छा लगा
    बहुत सुंदर रचना है
    प्रस्तुति काबिले तारीफ

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  11. "विपरीत का बंधन भी
    आकर्षण से कम नहीं...!"

    आपकी नवीनतम "तू और मैं"... और इस पोस्ट दोनों के चित्र ने मुझे आकर्षित किया....
    अच्छे लेखन के लिए बधाई हो ....

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